Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 36 of 53

background image
: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : ३३ :
ज्ञानपदना सेवनथी परम तृप्ति... संतोष... ने सुख थाय छे.
•••••••••••••••••••••••••••••••
ज्ञानस्वरूप निजपद बतावीने आर्चायदेव कहे छे के–हे भव्य!
आमां सदा प्रीतिवंत बन, आमां सदा संतुष्ट ने,
आनाथी बन तुं तृप्त, तुजने सुख अहो! उत्तम थशे.
आत्मा ज्ञानस्वरूप छे. जेटलुं ज्ञानपणे अनुभवाय छे तेटलो ज सत्य
आत्मा छे; ज्ञानथी जुदापणे अनुभवाता कोई परभावो आत्मानुं साचुं स्वरूप
नथी. आम ज्ञान स्वरूप नक्क्ी करीने तेमां ज तुं रति कर. मारुं वहालामां वहालुं
आ ज्ञानपद छे, बीजा कोई रागादि भावो ते मारुं साचुं स्वरूप नथी, ते मारा
स्वरूपथी बहार छे;–आम अंतर्मुख थईने पोताना ज्ञानस्वरूपना वेदनमां तने
शांति थशे, तने आनंद थशे; तारुं ज्ञानस्वरूप ज शांति अने आनंदस्वरूप छे एम
तने अनुभवाशे.
जेटलुं ज्ञान छे तेटलुं ज कल्याण छे; केमके ज्ञानमात्रभाव पोते कल्याण रूप
छे; ज्ञानथी जुदुं कोई कल्याण नथी.–आम नक्करी करीने तारा ज्ञानथी ज तुं सदाय
संतुष्ट था. अहा, परभावोथी भिन्न ज्ञाननो स्वाद लेतां तने कोई एवो अपूर्व
संतोष थशे.... के वाह! मारुं स्वरूप स्वयमेय कल्याणरूप छे, ते मारामां ज मने
अनुभवाय छे. जगतना बाह्य ईंद्रियविषयो के हर्ष–शोकना भावोनुं वेदन जीवने
कदी संतोष आपी शके नहीं. पोतानुं शांत–अनाकुळ चैतन्यस्वरूप पोते कल्याण छे,
ने तेना वेदनथी अपूर्व कल्याणनी प्राप्तिथी जीवने परम संतोष थाय छे माटे
ज्ञानना वेदनथी ज तुं सदा संतोष पाम. ज्ञानमां कोई अकल्याण नथी, उपद्रव
नथी, दुःख नथी, अतृप्ति नथी, ज्ञान तो स्वयमेव अपर्व शांतिना वेदन सहित छे,
ते पोते कल्याण छे, ते पोते सुख छे, ते पोते पोताथी तृप्त छे. आवा अनंत
निजभावोथी भरेलुं गंभीर ज्ञान छे ते ज आत्मानुं निजपद छे. अरे जीव! आ
भवदुःखथी छूटवा ने परम आनंद पामवा माटे तुं अंतरमां तारा परमतत्त्वनो
अभ्यास कर, तेमां ऊंडो ऊतरीने तेनो अनुभव कर.