Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : ४७ :
आत्मा......आत्मा.....आत्मा.....रे................
अहो! अद्भुत चिदानंद आत्मा.........
जेने देखतां थईश परमात्मा रे.....
अहो, अद्भुत चिदानंद आत्मा.....
भूल मा भूल मा भूल मारे रे
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा!
परने पोतानी मान मा रे
अहो, अद्भुत चिदानंद आत्मा!.....आत्मा
तारामां शांत था..... धर्मात्मा जीव था!
स्वरूप बहार तुं भम मा रे....
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा.....भूल मा

सम्यग्द्रष्टि था... भ्रम मटाडी,
आनंद स्वरूपे तुं लीन था रे.....
अहो! अद्भुत चिदानंद आत्मा!......आत्मा
आनंदनो दरियो ज्ञानस्वरूपी
उछळे एमां तुं मग्न था रे.....
तारी चिदानंद वस्तुने भूल मा..... भूल मा
आवी गयो छे अवसर रूडो
शांतस्वरूपे तुं स्थिर था रे.....
अहो! अद्भुत चिदानंद आत्मा! ..... आत्मा
(समयसार प्रवचनो पृष्ठ १७प उपरथी)