Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : ३ :
तेमणे कर्यां न हता. त्रीसवर्षनी वये जातिस्मरण थतां तेओ वैराग्य पाम्या ने
आत्मध्यान सहित वनजंगलमां विचरवा लाग्या. बार वर्ष सुधी मुनिअवस्थामां
मौनपणे ज्ञान–ध्यान सहित विचर्या; ने वैशाख सुद दशमना रोज सम्मेदशिखरनी
नजीक ऋजुवालिका नदीना तीरे क्षपकश्रेणी मांडीने लोकालोकप्रकाशक केवळज्ञान प्रगट
करीने अरिहंत परमात्मा थया. अने पछी राजगृहीमां विपुलाचल पर अषाड वद
एकमथी दिव्यध्वनि वडे जगतने मोक्षमार्गनो उपदेश आप्यो. ते उपदेश झीलीने
गणधरोए शास्त्रोनी रचना करी; वीतरागमार्गी संतोनी परंपराथी ते उपदेश आजे
चाल्यो आवे छे. तेमां कहे छे के–
हे जगतना जीवो! आत्मा अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप छे, परभावोनो तेमां प्रवेश
नथी, तेनी ओळखाण करीने अनादिना मोहने हवे छोडो.
आत्मा तो अनादिनो छे, ते कांई नवो थयो नथी; देह नवा नवा बदलाया, पण
आत्मा तो एनो ए अनादिकाळथी छे; तेणे अनादिथी शुं कर्युं, के पोताना स्वरूपने
भूलीने मोह कर्यो ने दुःखी थयो; हवे ते मोहने छोडवा माटे आ उपदेश छे.
आ भव पहेलांं पूर्व भवमां आत्मा हतो; अने ते क््यां हतो तेनुं ज्ञान पण थई
शके छे. अनेक जीवो जातिस्मरण ज्ञान वडे पोताना पूर्व भवने जाणनारा मोजुद छे.
जेम काले आत्मा क््यां हतो तेनुं ज्ञान थाय छे तेम आ भव पहेलांं पूर्वना भवोमां
आत्मा क््यां हतो तेनुं पण ज्ञान थई शके छे. आत्माना ज्ञाननी अचिंत्य ताकात छे.
पूर्वभवना ज्ञान करतांय आत्मानुं अनुभवज्ञान कोई अपूर्व छे, ते मोक्षनुं साधक छे.
आत्मा देहथी जुदो अनादिनो ज्ञान–आनंदस्वरूप छे; अज्ञानने लीधे आत्माने
पोताना आनंदनी खबर नथी, छतांपण ते पोते आनंदथी भरेलो ज छे;
आनंदस्वभाव छे तेनो का
ई नाश थयो नथी. ज्यारे जागे ने ज्ञानचेतनारूप थईने
अंतरमां देखे त्यारे पोताना आनंदनो पोताने अनुभव थाय छे.–आवो अनुभव हे
जीव! तुं आजे ज कर.–आवो अनुभव ते ज वीरनो मार्ग छे.
आत्मा सदाय ज्ञानस्वरूपे प्रकाशमान छे; रसिक जनोने आवो आत्मा रुचिकर
छे–वहालो छे. हे जीव! तुं सर्व तरफथी प्रकाशमान एवा ज्ञानस्वरूपने अनुभवमां ले.
ज्ञान ज आत्मानो सम्यक्स्वभाव छे; राग कांई आत्मानो स्वभाव नथी; ते तो
परभाव छे, ने देह तो जड छे. बापु! हवे ते परभावोना वेदनने रहेवा दे, ने तारा