जशे, ने आत्मानी अनुभवदशा वडे मोक्षपंथ प्रगट थशे. आ महावीरनो मार्ग छे, ने
आज महावीरनो उपदेश छे. भगवान महावीर आवा मार्गे मोक्ष पधार्या ने जगतने
माटे पण आवो ज मोक्षमार्ग बताव्यो. जे जीव आवो मार्ग समजीने पोतामां प्रगट करे
तेनो अवतार सफळ छे; तेणे महावीर भगवानने खरेखर ओळखीने तेमनो महोत्सव
उजव्यो. अने तेणे पोतामां महावीरना वीतरागमार्गने प्रसिद्ध कर्यो.
अंतरना चैतन्यतत्त्वने अनुभवमां लेतां परम आनंदरूप आत्मा अनुभवमां आवे छे.
आवो अनुभव ते भवचक्रथी छूटवानो उपाय छे. आवो मोंघो मनुष्यभव मळ्यो तो
भवना अभावनो भाव प्रगट कर. तुं अनादिथी अज्ञानने लीधे क्षणेक्षणे भयंकर
भावमरण करी रह्यो छे ने दुःखी थई रह्यो छे, तो हवे अंतरमां विचार तो कर के
आत्मानुं खरूं स्वरूप शुं छे? आ देहनी तो राख थशे चैतन्यतत्त्वनी कांई राख थवानी
नथी.–तो राखथी भिन्न चैतन्यतत्त्व पोते कोण छे तेने जराक लक्षमां तो ले! शीघ्र
त्वराथी आत्माने ओळख. तेमां प्रमाद न कर. प्रमाद करीश तो आ मोंघो अवसर
चाल्यो जशे.
परमात्मतत्त्व बिराजमान छे, तेमां नजर करीने अनुभव करतां आनंद थशे....ने
तारा भवना अंत आवशे. माटे हे जीव! आजे ज त्वराथी तारी चैतन्यसंपदाने
अनुभवमां ले.
सोना–रूपा–हीरानी खाण थाय छे ते कांई उत्कृष्ट नथी. ते तो जड पुद्गलनी रचना छे;
आत्मा चैतन्यरत्नोनी उत्कृष्ट खाण छे; आत्मानी चैतन्यसंपदामां कोई उपाधि नथी,
तेमां विपदा नथी. आवा आत्माने ज अमे निजपद तरीके अनुभवीएछीए, बीजा तो
बधा अपद छे, अपद छे.