Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४९९ आत्मधर्म : ५ :
तेने साधवामां कोई कलेश नथी, दुःख नथी, तेने साधवामां तो आनंदनी प्राप्ति छे.
भगवान महावीरे आवा आत्मानी साधना पूर्व भवोमां शरू करी हती, तेमां
आगळ वधतां वधतां आ भवमां आनंदनी पूर्णता करीने साक्षात् परमात्मा थया.
तेमनुं स्मरण करीने तेमना मार्गने साधवो ते साचो महोत्सव छे.
अरे प्रभु! सुखनी संपदा तो तारामां होय, के जडमां होय? जडसंपदामां
तारुं सुख नथी. सुखनी संपदावाळो तो तुं पोते ज छो. तारी चैतन्यसंपदामां कोई
विपदा नथी. मान–अपमानना विकल्पो के निंदा–प्रशंसाना शब्दो तेमां प्रवेशी
शकता नथी. मान मळतां फूलाई जाय, के अपमान थतां करमाई जाय–एवुं आ
चैतन्यतत्त्व नथी; चैतन्यतत्त्व तो सदाय आनंदमय छे,–जेमां कदी विपदा आवती
ज नथी, जे कदी करमातुं नथी; सदाय शांतरसमां शोभतुं ने चेतनभावथी खीलेलुं
चैतन्यतत्त्व छे. आनंदमय चेतना खीली ते खीली, ते कदी करमाती नथी.
अरे जीव! पोतानी संपदानो कदी तें विचार कर्यो नथी, तेने जोवानो प्रयत्न
कर्यो नथी, ज्ञानी पासेथी सांभळीने अंदर मनन कर्युं नथी, पण हवे आ अपूर्व
टाणां मळ्‌या छे, ज्ञानी संतो तने तारी महान चैतन्यसंपदा बतावे छे, तो ते
सांभळीने बहुमानपूर्वक तेनुं मनन कर, अंदर विचार कर ने अंतरना प्रयत्न वडे
तारी आनंद संपदाने देख. अरे, एकवार तो अमे कहीए छीए तेवो निर्णय कर.
सुखनी आ मोसम छे; आनंदनो पाक पाके ने अनंतकाळनुं सुख मळे एवुं तारुं
अतीन्द्रिय चैतन्यधाम छे. संतो आवा आनंदधामने अनुभवे छे ने तमे पण आजे
ज तेनो अनुभव करो.
पोताना अनुभवनी साक्षीसहित श्री मुनिराज कहे छे के–हुं आवा आनंदने
अनुभवुं छे ने तमने पण आवा आनंदनो अनुभव करवा माटे आमंत्रुं छुं. आवो
अनुभव थई शके छे, माटे तमे तेवो अनुभव प्रगट करीने तमारी चैतन्यसंपदाने
पामो. वीर थईने वीरना मार्गे आवो.
शुभ के अशुभ ते तो बधा विषवृक्षनां फळ छे; तेनाथी पार एवुं जे चैतन्य
तत्त्वनुं अमृत छे तेने अमे अनुभवीए छीए, अने हे जीवो! तमे पण आ सहज
चैतन्यअमृतने हमणां ज भोगवो. विलंब न करो–आळस न करो, हमणां ज
अंतर्मुख थईने तेने अनुभवो. पोतानुं तत्त्व पोतामां ज छे,–पोते पोताना
अनुभवमां