Atmadharma magazine - Ank 354
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 53

background image
: ६ : आत्मधर्म : चैत्र : २४९९
विलंब शो? जे जीव हमणां ज आवा आत्मतत्त्वने अनुभवे छे ते आनंदसहित
अल्पकाळमां मुक्तिने पामे छे,–तेमां कोई संशय नथी.
अनुभव करनार पोते पोताना मुक्तस्वरूपने पोतामां देखे छे, एटले मोक्षने
माटे तेने कोई संदेह रहेतो नथी. शुभाशुभथी पार चैतन्यना आनंदनो ज्यां अनुभव
थयो त्यां मोक्षना आनंदनो नमूनो आवी गयो, ने अल्पकाळमां साक्षात मोक्षदशा
प्रगट करीने ते पोते सिद्ध परमात्मा थई जशे.
आवो महावीर भगवाननो मार्ग छे.
भगवान महावीरे आत्माना अनुभव वडे मोक्षने साध्यो....
तमे पण आजे ज एवो अनुभव करो.

अहो जीवो! चैतन्यनो आनंदस्वाद अने रागनो
आकुळस्वाद, ए बंनेने भेदज्ञानवडे अत्यंत भिन्न जाणीने
चैतन्यरसनुं पान करो, भेदज्ञानना बळे सर्वे विकल्पथी जुदुं
वर्ततुं एवुं ज्ञान ते निर्विकल्पचैतन्यना अमृतरसथी भरेलुं
छे. साचुं भेदज्ञान अने सम्यग्दर्शन थतां आत्माना
चैतन्यअमृतनो निर्विकल्प स्वाद आवे छे. अहो, वीतरागी
संतोए ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान करावीने आत्माना
निर्विकल्प आनंदरसनुं पान कराव्युं छे.