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साधे छे. सिद्ध भगवान वगेरेनी पण खरी ओळखाण तेने ज छे.
आत्मानो स्वभाव निराकुळ आनंदथी भरेलो, अने ईच्छाना अभावरूप छे;
ईच्छाने रोकतो नथी, एटले के ईच्छाना निरोधरूप तप–के जेमां आत्माना आनंदनो
अनुभव छे अने जे निर्जरानुं कारण छे तेने अज्ञानी ओळखतो नथी; ते तो एम
माने छे के अनाज न खाधुं अथवा कंईक शुभराग कर्यो–एटले तप थई गयो ने
निर्जरा थई गई;–पण एवुं तपनुं के निर्जरानुं स्वरूप नथी. अंतरना ध्यान वडे
चैतन्यनुं प्रतपन थाय एटले के विशेष शुद्धता थाय ते तप अने निर्जरा छे. अने
नीराकुळतारूप मोक्षतत्त्व छे.–आवा निर्जरा अने मोक्षतत्त्वने अज्ञानी ओळखतो नथी.
साते तत्त्वोमां अज्ञानीने विपरीत प्रतीति छे; आवी ऊंधी श्रद्धासहितनुं जे
कांई जाणपणुं छे ते बधुंय अज्ञान छे अने दुःखदायक छे,–एम जाणीने ते छोडवा
योग्य छे.
छे, ने मोक्षसुखनो साचो उपाय प्रगटे छे. अहा, मोक्षसुखनो साचो स्वाद अज्ञानीजीवे
कदी जाण्यो नथी. मोक्षसुखनुं स्वरूप ओळखे तो पोताने भेदज्ञान थईने अपूर्व
वीतरागविज्ञान प्रगटे, ने मोक्षसुखनो नमुनो आवी जाय.
कारण छे. संपूर्ण नीराकूळ थतां पूर्ण सुखरूप मोक्षदशा प्रगटे छे. ‘हु ज्ञानानंद–