
(७) आत्मानी पूर्ण शुद्धता थतां आकुळतानो सर्वथा अभाव थवो ने कर्मोथी
यथार्थ तत्त्वश्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे, ने सम्यग्दर्शन ते मोक्षनुं मूळ छे.
केरीनो रस–रोटली ने पतरवेलियां खातो होय ते वखतेय दुःखी छे, स्वर्गना
मिथ्याद्रष्टि देवो अमृतनो स्वाद लेता होय ते वखते पण दुःखने ज वेदी रह्या छे;
पण ते जीवो भ्रमथी पोताने सुखी माने छे. अरे भाई, ए तो अशुभ ईच्छा छे,
पाप छे, आकुळता छे, तेमां दुःखनुं ज वेदन छे. मोढामां केरीनो रस पड्यो होय ते
वखते दुःखनो ज स्वाद आवे छे, केरीनो नहीं. ए तो अशुभनी वात थई, पण
शुभपरिणाम होय, शुक्ललेश्या होय ते वखतेय अज्ञानी जीवो दुःखी ज छे. ज्यां
सुख भर्युं छे ते वस्तुनी तो तेने खबर नथी. मोक्षमां आकुळता वगरनुं सुख छे,
त्यां कोई विषयोनी ईच्छा नथी.
अनुभवाय छे त्यां बाह्य विषयोनुं शुं काम छे? ज्यां आत्माना सहजसुखमां ज
लीनता छे त्यां बाह्यपदार्थोनी ईच्छा केम होय? सुख तो आत्मामांथी आवे छे,
कांई बाह्यवस्तुमांथी नथी आवतुं. बाह्य पदार्थने भोगववा कोण ईच्छे?–के जे
ईच्छाथी दुःखी होय ते. जे स्वयं सुखी होय ते बीजा पदार्थने केम ईच्छे? जे नीरोग
होय ते दवाने केम ईच्छे? मुक्त जीवोने जगतना बधा पदार्थोनुं ज्ञान छे पण कोईनी
ईच्छा नथी; ईच्छा नथी माटे दुःख नथी, पोताना चैतन्यसुखना वेदनमां ज तेओ
लीन छे.–आवी मोक्षदशाने ओळखे तो आत्माना स्वभावनुं ज्ञान थई जाय,
रागमांथी ने विषयोमांथी सुखबुद्धि ऊडी जाय ने तेनाथी भिन्नतानुं भान थाय.–
आनुं नाम वीतरागविज्ञान.