Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म जेठ: २४९९ :
(६) सम्यग्दर्शनपूर्वकनी शुद्धताथी कर्मोनी निर्जरा थाय छे.
(७) आत्मानी पूर्ण शुद्धता थतां आकुळतानो सर्वथा अभाव थवो ने कर्मोथी
आत्मानुं छूटी जवुं ते मोक्षतत्त्व छे. ते पूर्ण सुखरूप छे.
आ प्रमाणे सात तत्त्वोने ओळखीने तेमांथी सम्यग्दर्शनादि सुखनां कारणोने
ग्रहण करवां ने दुःखना कारणरूप मिथ्यात्वादिने छोडवां, ते माटे आ उपदेश छे. आवी
यथार्थ तत्त्वश्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे, ने सम्यग्दर्शन ते मोक्षनुं मूळ छे.
अज्ञानी जीव बहारनी अनुकूळताथी पोताने सुखी माने छे, पण
सम्यग्दर्शन वगर ते दुःखी ज छे. कीडी साकर खाती होय ते वखते दुःखी छे, माणस
केरीनो रस–रोटली ने पतरवेलियां खातो होय ते वखतेय दुःखी छे, स्वर्गना
मिथ्याद्रष्टि देवो अमृतनो स्वाद लेता होय ते वखते पण दुःखने ज वेदी रह्या छे;
पण ते जीवो भ्रमथी पोताने सुखी माने छे. अरे भाई, ए तो अशुभ ईच्छा छे,
पाप छे, आकुळता छे, तेमां दुःखनुं ज वेदन छे. मोढामां केरीनो रस पड्यो होय ते
वखते दुःखनो ज स्वाद आवे छे, केरीनो नहीं. ए तो अशुभनी वात थई, पण
शुभपरिणाम होय, शुक्ललेश्या होय ते वखतेय अज्ञानी जीवो दुःखी ज छे. ज्यां
सुख भर्युं छे ते वस्तुनी तो तेने खबर नथी. मोक्षमां आकुळता वगरनुं सुख छे,
त्यां कोई विषयोनी ईच्छा नथी.
‘मोक्षमां रस–रोटली वगेरे तो नथी!’ पण शेनां होय? त्यां क्यां आकुळता छे?
ज्यां खावानी ईच्छा ज नथी त्यां खोराकनुं शुं काम छे? ज्यां आत्मामांथी ज सुख
अनुभवाय छे त्यां बाह्य विषयोनुं शुं काम छे? ज्यां आत्माना सहजसुखमां ज
लीनता छे त्यां बाह्यपदार्थोनी ईच्छा केम होय? सुख तो आत्मामांथी आवे छे,
कांई बाह्यवस्तुमांथी नथी आवतुं. बाह्य पदार्थने भोगववा कोण ईच्छे?–के जे
ईच्छाथी दुःखी होय ते. जे स्वयं सुखी होय ते बीजा पदार्थने केम ईच्छे? जे नीरोग
होय ते दवाने केम ईच्छे? मुक्त जीवोने जगतना बधा पदार्थोनुं ज्ञान छे पण कोईनी
ईच्छा नथी; ईच्छा नथी माटे दुःख नथी, पोताना चैतन्यसुखना वेदनमां ज तेओ
लीन छे.–आवी मोक्षदशाने ओळखे तो आत्माना स्वभावनुं ज्ञान थई जाय,
रागमांथी ने विषयोमांथी सुखबुद्धि ऊडी जाय ने तेनाथी भिन्नतानुं भान थाय.–
आनुं नाम वीतरागविज्ञान.
जेने आवुं वीतरागविज्ञान नथी, विषयोमां ने रागमां जेने सुख लागे छे, तेने