विषयोने ज ईच्छे छे. अहो! मोक्ष ए तो परम आनंद छे, जगतना कोई पदार्थनी
जेने अपेक्षा नथी, एकला आत्मामांथी प्रगटेलो पूर्ण आनंद छे. ज्ञानी तेनी भावना
भावे छे के–
अनंत दर्शन ज्ञानअनंत सहित जो...
अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे?
मोक्षमां राग वगरनी पूर्ण शान्ति छे; अहीं पण रागनो जेटलो अभाव थयो तेटली
ज शांति छे, कांई बाह्यपदार्थोना भोगवटामांथी शांति नथी आवती; बाह्यपदार्थो जड
अने पर छे, तेनी ईच्छा ते दुःख छे; ‘सुख’ मां कोईनी ईच्छा होती नथी, सुख तो
आत्मानो स्वभाव छे. आवुं पूर्ण सुख ते मोक्ष छे.
अमारे शुं कामना? एवा सिद्ध अमारे जोईता नथी; एटले के मोक्ष ज एने जोईतो
नथी. एने तो परनी कर्तृत्वबुद्धिना मिथ्यात्वमां रखडवुं छे. अरे भाई! अहीं तुं पण
शुं करे छे? परनुं तो तुं पण करी शकतो नथी, तुं मात्र तारामां राग अने अज्ञान
करीने दुःख भोगवे छे; ते संसार छे; सिद्धभगवंतो वीतराग–विज्ञान वडे परमसुख
भोगवे छे, तेओ निजानंदने भोगवे छे ने आकुळता जराय करता नथी, ते मोक्ष छे.
सिद्धभगवंतोने स्वरूपमां पूर्ण स्थिरता छे तेथी पूर्ण सुख छे, साधकने पण जेटली
स्वरूपमां स्थिरता थाय तेटलुं सुख छे. अज्ञानीने तो स्वरूपनी खबर ज नथी एटले
रागादि परभावमां स्थिरतावडे ते दुःखी छे; मोक्षसुख केवुं होय तेने ते ओळखतो पण
नथी. ज्ञानी ज रागथी भिन्न अतीन्द्रिय चैतन्यसुखरूप मोक्षना स्वादने जाणीने तेने
साधे छे. सिद्धभगवान वगेरेनी पण खरी ओळखाण तेने ज छे.