Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
सम्यग्द्रष्टिनुं अद्भुत पराक्रम
स्वभावनी श्रद्धानुं एवुं महान बळ छे के कोई पण प्रसंगे
भयभीत थईने तेओ आत्मबोधथी चलित थता नथी.

सम्यग्द्रष्टिनी आत्मदशा एवी अद्भुत होय छे के वज्र पडे ने त्रणेलोक भयथी
खळभळी ऊठे तोपण तेने पोताना आत्मस्वरूपमां शंका थती नथी; निःशंक अने
निर्भयपणे ते पोताने ज्ञानस्वरूपे ज वेदे छे. वज्र वगेरे पडवाथी मारा स्वरूपनो नाश
थई जशे–एवो कोई भय तेने थतो नथी. स्वभावनी श्रद्धामां निःशंकतानुं कोई अपार
सामर्थ्य छे. आवुं अद्भुत पराक्रम सम्यग्द्रष्टिने ज होय छे. आवा सम्यग्द्रष्टिनुं
अद्भुत–स्वरूप आचार्यदेव समयसारना १५४ मा कळशमां समजावे छे–
सम्यग्द्रष्टिनी ज्ञान–वैराग्यशक्ति कोई अलौकिक होय छे. स्वभावनी
निःशंकताने लीधे तेमने अत्यंत निर्भयता होय छे. जेना भयथी त्रणलोक खळभळी
जाय एवो वज्रपात थाय तोपण सम्यग्द्रष्टि पोताना ज्ञानस्वरूपने अवध्य जाणे छे,
एटले मारो नाश थई जशे एवी कोई शंका के भय तेने थतो नथी. भले, बहारथी
कदाच सिंह वगेरेने देखीने भागी जता देखाय, छतां ते वखतेय पोताना
ज्ञानस्वभावनी श्रद्धामां तो ज्ञानी निःशंक अने निर्भय ज छे. अने अज्ञानी कदाच
सिंह वगेरेने देखीने न भागे, छतां अंदर पोताना भिन्न ज्ञानस्वरूपनुं वेदन तेने न
होवाथी ते वखते पण ते शंका अने भयमां ज वर्ती रह्यो छे. राग वगर अने संयोग
वगर जाणे मारुं चेतनस्वरूप नहि टके–एवो भय अने शंका तेने रह्या ज करे छे.
ज्यारे ज्ञानी तो सदाय निःशंक छे के राग अने संयोग वगर ज मारा चेतनस्वरूपथी
हुं सदा टकनारो छुं; मारा चेतनस्वरूपनो नाश करवा जगतमां कोई समर्थ नथी.–
आवी निःशंकताने लीधे ज्ञानीने सदा निर्भयता छे, तेने मरण वगेरेनो भय होतो
नथी. ज्ञाननुं मरण ज नथी पछी मरणनो भय केवो?–आवुं निर्भयपणुं सम्यग्द्रष्टिने
ज होय छे. गमे तेवा शुभाशुभ प्रसंग आवे, के अनुकूळ–प्रतिकूळ संयोग आवे पण
ज्ञानी तो पोताने ते बधाथी