Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४९९ : जेठ आत्मधर्म : २३ :
सुगंधथी भरेलो छे, चैतन्यनी सुगंध तेना अनंतगुणमां व्यापी रहेली छे. चैतन्यनी
सुगंध चैतन्यमां व्यापे छे. चैतन्यनी सुगंध जडमां जती नथी. अतीन्द्रियज्ञानथी ज ते
चैतन्यसुगंध स्वादमां आवे छे, पण नाक वगेरे ईन्द्रियवडे तेनो स्वाद न आवे, केमके
पुद्गलनी गंध तेनामां नथी. चैतन्य अने जड बंने तत्त्वो तद्न नीराळा छे,
कोई कोईनुं स्वामी नथी. चैतन्यनो स्वाद चैतन्यमां, ने जडनो स्वाद जडमां,
कोई एकबीजामां भळता नथी.–आवा भिन्न आत्माने हे भव्य! तुं तारा ज्ञानथी
जाण! एम भगवान कुंदकुंदस्वामीनो उपदेश छे.
आत्मा चैतन्यस्वरूपथी भरेलो छे तेने पुरुषार्थ वडे तुं जाण. जडना अनंत
गुणो जडमां परिणमे छे. आत्माना अनंतगुणो आत्मामां परिणमे छे,–एम बंने
स्वतंत्र परिणमे छे. आ पुद्गलना जे वर्णादि भावो ते मारुं स्वरूप नथी, ने अंतरमां
जे रागादि विभावो थाय ते पण मारा चैतन्यनो स्वभाव नथी, तेनो हुं कर्ता नथी, हुं
तेने जाणनारो ज्ञायक छुं–एम पुरुषार्थ वडे ज्ञान कर... भेदज्ञान करीने
ज्ञायकस्वभावनी प्रतीत करीने तेमां लीन थवाथी रागादि विभाव पण टळी जाय छे,
अने आत्मामांथी वीतरागदशानी प्राप्ति थाय छे. आवा आत्माने जाणतां धर्मीने,
जेवा सिद्धभगवान छे तेवा पोताना चैतन्यस्वभावनो अंशे स्वानुभव थाय छे...
चैतन्यरसथी भरेला ‘आनंदघट’नी स्वानुभूति थाय छे. अहो! आत्मा आनंदरसथी
भरेलो घडो छे...आनंदघाट अनंतरसथी भरेलो छे, अनंत गुणना रसथी भरेलो
आनंदघट आत्मा छे. असंख्यप्रदेशी चेतन्यघट, तेना असंख्यप्रदेशनी मर्यादा क्षेत्रथी छे,
पण तेना आनंदरसनी मर्यादा नथी, अनंत आनंदरस असंख्यप्रदेशमां भर्यो छे.
चैतन्यमां आनंदरस अनंतो छे, एवा अनंतगुणो छे; ज्ञानगुण अनंत छे–तेनो
अपार महिमा छे, जेनो कोई थाह नथी,–जेनी शक्तिनो पार नथी; एम अनंत
चैतन्यशक्तिना रसथी भरेलो आनंदघट आत्मा छे.–आवा आत्माने हे भव्य! तुं
तारा स्वसंवेदनवडे जाण. ईंद्रियोथी पार एवा अंतर्मुख ज्ञानवडे आत्मा जणाय छे.
वळी आत्मा ईंद्रियोथी पार, रागथी पार एवो अव्यक्त छे. चैतन्य पोते
चैतन्यथी ज व्यक्त थाय छे (एटले वेदनमां आवे छे) पण ते रागवडे के
ईंद्रियज्ञानवडे व्यक्त थतो नथी. तेनुं ग्रहण ईंद्रियवडे के रागवडे थतुं नथी; अतीन्द्रिय
ज्ञानरूप पोताना चैतन्यवडे ज तेनुं ग्रहण थाय छे. ते चैतन्यथी भरेलो छे. ईंद्रियो
वगेरे तेनामां नथी, तेथी ते कांई सर्वथा शून्य नथी, ते पोताना अनंत चैतन्यरसथी