Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
भरपूर छे. आवो अखंड आत्मा पोताना आत्मानी अखंडद्रष्टिथी जणाय छे. आत्माने
जाणवानो मार्ग पोताने अनादिकाळथी अजाण्यो हतो ते श्री देव–गुरुना निमित्तथी
पोताने जणाय छे. चैतन्यचिह्न द्वारा आत्माने जाणतां भवनो अभाव थाय छे.
मन–वाणीथी पेले पार आत्मा बिराजे छे, ते आत्मा रागवडे–ईद्रियवडे जाणी शकातो
नथी, ते पोते पोताना चैतन्यचिह्नथी ज जाणी शकाय छे. आत्माने जाणवानी जेने
खरी जिज्ञासा थई, तमन्ना लागी, ते आत्माने जाणी शके छे. ज्ञानथी ज आत्मा
जणाय छे, भेदज्ञाननी तीक्षणता वडे आत्मा जणाय छे. जेणे आत्माने ओळख्यो ते
जीव गृहस्थाश्रममां होय तोपण आत्मानी स्वानुभूति करे छे; तेने आत्मानो
स्वानुभव स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष छे, ते ज्ञान ने आनंदथी भरपूर होय छे. जेम हंस
पोतानी चांच वडे दूध अने पाणी जुदा करी नांखे छे तेम धर्मी जीव भेदज्ञाननी
तीक्ष्णता वडे ईन्द्रियो–राग–खंडखंडरूप भावेन्द्रियो ए बधाथी पोताना चैतन्यतत्त्वने
जुदुं पाडी अखंड चैतन्यस्वरूपने स्वसंवेदनमां ल्ये छे.
चैतन्यस्वभाव एवो छे के ईन्द्रियोथी ते व्यक्त थतो नथी, ईन्द्रियोमां ते
आवतो नथी; ईन्द्रियोथी जुदो चैतन्यस्वभाव छे; अंदरना रागथी के ईन्द्रियोथी के
परसन्मुखी खंडखंड ज्ञानथी ते व्यक्त थतो नथी; चैतन्य तो चैतन्यथी व्यक्त थाय
छे; खंडखंडज्ञान जेटलो ते नथी. पोताना चैतन्यस्वभावथी ते व्यक्त छे, पण परथी
अव्यक्त छे, ज्ञानद्वारा तेनी प्रतीत थई शके छे ने पोतानी पर्यायमां ते व्यक्त
थई शके छे. जे अखंड स्वरूप छे ते पोतानी स्वभावनी परिणति द्वारा, परना
आलंबन वगर ग्रहणमां–जाणवामां–अनुभववामां आवे छे; वच्चे खंड आवे छतां
पण तेनुं ग्रहण तो अंतरमां पोताना चैतन्यस्वभावनी अखंड परिणतिद्वारा ज
थाय छे, तेमां परनुं आलंबन नथी. पर्यायथी ग्रहण थाय छतां तेनी द्रष्टि तो
अखंड उपर ज छे. अखंडनी द्रष्टिद्वारा तेनुं ग्रहण थाय छे, खंडना आलंबनद्वारा
तेनुं ग्रहण थतुं नथी.
अंदरमां चैतन्यस्वभाव अनंतगुणमहिमाथी भरेलो छे, ते स्वसंवेदनमां व्यक्त
छे, पण ईन्द्रियोथी ते व्यक्त नथी–जणाय तेवो नथी. शब्दथी पार चैतन्यता आत्मामां
भरेली छे. आत्मामांथी शब्दनी उत्पत्ति नथी, शब्द तो पुद्गलनी पर्याय छे, ते शब्द
वडे आत्मा जणातो नथी, शब्द आत्मामां नथी. आवा आत्माने पोते पोताथी जाणे
त्यारे निमित्तथी एम कहेवाय छे के देव–गुरुना उपदेशथी आत्मा जाण्यो.
अनादिकाळनो अजाण्यो मार्ग, ते पोते ज्ञानथी ज जाणी शके छे, त्यां गुरुना उपदेश
वडे जाणी शकाय–एम निमित्त तरफथी कहेवाय छे. अनादिकाळमां पोते पहेलुं