Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
परने करवानी बुद्धिरूप अध्यवसान ज बंधनुं कारण छे
जीवना अध्यवसान वडे परनुं कंई ज कार्य थतुं नथी
माटे ते अध्यवसान मिथ्या छे. अने मिथ्या होवाथी जीवने
पोताने अनर्थकारी छे.–आ रीते अज्ञानमय अध्यवसाननुं
मिथ्यापणुं समजावीने तेने छोडवानो उपदेश छे.
[समयसार गा. २७६ उपरनुं आ प्रवचन जिज्ञासुओने उपयोगी होवाथी
रेकर्डिंग टेप–रीलमांथी लखीने अहीं आपवामां आव्युं छे.]
पोताना ज्ञानचेतनास्वभावने भूलीने अज्ञानी जीव एम माने छे के हुं पर
जीवने सुखी–दुःखी करुं, परजीवो मने सुखी–दुःखी करे; हुं शुभ–अशुभ राग वडे परने
जीवाडुं ने मारुं, के परजीवो मने जीवाडे ने मारे, हुं परजीवोने बंधन के मुक्ति करुं ने
परजीवो मने बंधन के मुक्ति करे.–आम स्व–परनी एकताबुद्धिथी अज्ञानी जीवो माने
छे; परंतु तेनी मान्यता अनुसार कांई परजीवनुं काम थतुं नथी. पर जीवमां सुख–
दुःख हर्ष–शोक थाय के न थाय ते तेना पोताना कारणे थाय छे, आ जीवना भावने
लीधे तेमां कांई थतुं नथी. आ जीवनो मिथ्या अभिप्राय तेने पोताने चारगतिमां
रखडवानुं कारण थाय छे. परने माटे तो ते अभिप्राय कांई ज कार्यकारी नथी, एटले
अकिंचित्कर छे, मिथ्या छे, निष्फळ छे.
हिंसाना अशुभपरिणाम के अहिंसाना शुभपरिणाम, तेना वडे हुं परने मारी
शकुं के जीवाडी शकुं–एवी जे मिथ्या मान्यता छे ते मान्यता ज पापबंधनुं मूळ कारण
छे. परजीव मरे के न मरे पण अज्ञानी पोतानी मिथ्यामान्यताने कारणे बंधाय छे.
हिंसा–अहिंसाना परिणामनी जेम, असत्य ने सत्य वगेरेमां पण जीवने परसाथेनी
एकत्वबुद्धि ज बंधनुं कारण छे, परनी क्रिया बंधनुं कारण नथी. क्रिया तो जुदी छे,
शुभ–अशुभ परिणाम साथे जे एकताबुद्धि करे छे ते ज पुण्य–पाप वडे बंधाय छे.