Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४९९: जेठ आत्मधर्म : २९ :
परवस्तु तो आ आत्माना अस्तित्वथी जुदी छे, ते आत्मामां शुं करे? ने आत्मा
तेनामां शुं करे? आवुं भिन्नपणानुं भेदज्ञान करीने ज्ञानभावरूपे परिणमे तेने बंधन
थतुं नथी.
बंधना कारणमां अहीं तो अज्ञानीना मिथ्यात्वने ज मुख्य गण्युं छे. लोको
अहिंसादि शुभपरिणामने धर्म माने छे, पण ते धर्म नथी; अहीं तो कहे छे के ते
अहिंसादिना शुभभाव मारुं कार्य छे अने ते अहिंसाना भाव वडे हुं परने बचावी
शकुं छुं–एवी बुद्धि ते तो मिथ्यात्व छे; ने ते अधर्म छे, बंधनुं ज कारण छे. अशुभमां
एकत्वबुद्धि के शुभमां एकत्वबुद्धि ते बंने मिथ्यात्व ज छे. रागथी छूटो पडीने
भेदज्ञान वडे ज्ञानरूपे जे परिणम्यो ते ज्ञानीने बंधन थतुं नथी. जेने मिथ्याबुद्धि छे ते
अशुभ करे के शुभ,–पण मिथ्यात्वथी ते बंधाय ज छे.
भाई! तारा आत्माना ज्ञानस्वभावना आधारे तुं वीतरागभावने उत्पन्न कर,
ने रागने न कर, –एवा भाव वडे तुं तारा आत्मानी दया कर; तारा आत्माने
मिथ्यात्वनी हिंसाथी हणातो बचावीने अहिंसा कर.–आवी वीतरागी स्वदया ते
परमार्थ अहिंसा छे, ने आवी अहिंसा ते धर्म छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
भाई, तुं अशुभमां एकताबुद्धि कर के शुभमां एकताबुद्धि कर, ते एकताबुद्धि
ज तने बंधनुं कारण छे. मिथ्यात्व टळ्‌या पछीना बंधनने बंधनमां गणता नथी, केमके
ज्ञानमां तेनुं कर्तृत्व नथी; ज्ञानभूमिकामां धर्मीजीव रागने आववा देतो नथी. जीवनो
मिथ्याभाव ते बंधनुं एक कारण; ने परजीव मरे के बचे ते बंधनुं बीजुं कारण–एम
बंधना कारण बे नथी, पण अज्ञानी जीवनो अध्यवसान ते एक ज बंधनुं कारण छे.
जेम आकाशना फूलने चूंटवानी बुद्धि ते मिथ्या ज छे; केम के ते सत् नथी; तेम
परवस्तुनी क्रियाने आत्मा करे एवी बुद्धि, परने सुखी–दुःखी हुं करुं एवी बुद्धि, ते
मिथ्या ज छे, केमके आत्मामां परनी क्रियानो अभाव छे. आत्मामां जे छे ज नहि तेने
आत्मा केम करे? छतां मिथ्याबुद्धिथी परने करवानुं माने तो ते पोताने ज अनर्थनुं
कारण छे; परमां तो तेनाथी कांई ज थई शकतुं नथी. आ रीते अध्यवसान परने माटे
अकिंचित्कर छे अने पोताने माटे अनर्थनुं–दुःखनुं–बंधनुं कारण छे. माटे ते छोडवा
जेवो छे.
परवस्तु तो बंधनुं कारण नथी; हवे अशुभभाव के शुभभाव–ते बंने
वखते तेमां