Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३० : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
कर्तृत्वबुद्धिरूप जे अज्ञानभाव छे ते ज बंधनुं कारण छे. अने ज्यां ते अज्ञानभाव
छूटीने ज्ञानभावरूप परिणमन थयुं त्यां ते ज्ञानमां बंधन छे ज नहि. बे वात
लीधी छे–रागथी भिन्न ज्ञानरूप परिणमन ते ज मोक्षनुं कारण छे; अने रागादिमां
एकताबुद्धिरूप अज्ञानभाव ते ज बंधनुं कारण छे. पछी तेमां एक अशुभ ने बीजुं
शुभ एवा भेदनी मुख्यता नथी. भले द्रव्यलिंगी साधु थईने अहिंसा–सत्य वगेरे
पांच महाव्रत पाळतो होय पण ते महाव्रतना शुभरागनी साथे ज्ञाननी
एकत्वबुद्धि जेने वर्ते छे ते अज्ञानी छे, ने ते तेनो अज्ञानमय भाव बंधनुं ज
कारण छे.
परना कर्तृत्वनी जे मिथ्याबुद्धि छे तेनो कोई सत् विषय जगतमां नथी. पर
वस्तु जगतमां सत् छे, पण आ जीव अज्ञानभावथी पण तेनो कर्ता थई शके–एवुं
वस्तुस्वरूप नथी. वस्तुस्वरूप जेम न होय तेम माने तो मान्यता मिथ्या छे, ने ते
मिथ्या मान्यता ज जीवने दुःखनुं ने बंधनुं कारण छे, बीजुं कोई नहि. जेम कोईवार
हिंसानो के प्रमादनो भाव न होवा छतां मुनींद्रना पग नीचे काळप्रेरित कोई जीवडुं
आवी जाय तो त्यां ते बाह्यक्रिया कांई मुनींद्रने बंधनुं कारण थती नथी. बंधनुं कारण
पोतानो भाव छे ने तेमां पण रागादि साथे एकताबुद्धिरूप अज्ञानभाव ज बंधनुं
कारण छे. रागथी भिन्नतारूप ज्ञानभाव थयो तेमां बंधन नथी.
जीवने बंध–मोक्षनुं कारण जीवनो पोतानो भाव होय ते ज थाय, पण जीवथी
जे भिन्न होय एवी परवस्तु जीवने बंधनुं के मोक्षनुं कारण थाय नहि. अज्ञानीने
रागादि साथे तन्मयभाव छे, –ते अज्ञानभाव जीवनो छे तेथी ते तेने बंधनुं कारण
थाय छे; पण ते वखतनी बहारनी हिंसादि क्रिया के जीव बचवारूप क्रिया थाय ते
कांई आ जीव साथे एकरूप नथी, आ जीवथी तो ते जुदी छे, ने ते क्रिया सामा ते–ते
जीवना पोताना कर्मउदय प्रमाणे थाय छे, –आयुं न होय तो मरे ने आयु होय तो
जीवे, तेनो कर्ता आ जीव नथी, तेथी तेनी क्रिया आ जीवने बंधनुं कारण नथी.
अज्ञानी जीवने तेनो पोतानो अज्ञानमयभाव ज बंधनुं कारण छे. ने ज्ञानभावमां
तन्मय वर्तता ज्ञानीने बंधन छे ज नहि.
आ जीव एम माने छे के हुं सामा जीवने धर्मनी समजण आपीने मोक्ष पमाडी
दउं, –पण सामो जीव पोते वीतरागी ज्ञानभावरूप न परिणमे तो ते मोक्ष पामतो
नथी, एटले आ जीवनी मान्यता तो नकामी गई, मिथ्या थई. तेम आ जीव एम
माने के