सरागरूप परिणाम न करे तो बंधातो नथी, एटले आ जीवनी मान्यता तो नकामी
गई, मिथ्या गई.
परनी क्रिया जीवना अध्यवसाय वगर ज थाय छे, आ जीव तेनो कर्ता नथी. ए ज
रीते पर जीव के परवस्तु आ जीवना बंध–मोक्षने करता नथी. माटे हे भाई! परना
कर्तृत्वनी मिथ्याबुद्धि छोडीने, रागथी भिन्न ज्ञाता–द्रष्टा स्वभावरूपे रहे–ए ज
तात्पर्य छे, ए ज मोक्षसुखनो उपाय छे.
मिथ्या अभिप्राय करे तोपण तेने कारणे कांई परमां बंध–मोक्ष तो थतां नथी, आ
रीते तारो भाव परमां अकिंचित्कर छे–नकामो छे; माटे ते मिथ्याभाव छोड, ने रागथी
पार स्व–द्रव्यनो आश्रय कर. स्वद्रव्यनो आश्रय करीने जे ज्ञानरूप परिणम्यो ते
ज्ञानीना ज्ञानमांथी परनुं के रागनुं कर्तृत्व छूटी गयुं छे; एटले ज्ञानभावमां तेने
बंधन थतुं ज नथी.
मुक्त करी दउं, –पण ते जीव तेना पोताना सम्यकत्वादि वीतरागपरिणाम वगर
क्यांथी मुक्त थशे? अने ते जीव तेना वीतरागपरिणामवडे मुक्त थयो तो तेमां तें शुं
कर्यु? अने तुं तेवी मान्यता न करे तोपण जे जीवो वीतरागभाव करे छे तेओ मुक्त
थाय ज छे; ने जेओ रागभाव करे छे तेओ बंधाय छे. माटे तुं आखा जगतनो बोजो
तारा ज्ञानमांथी उतारी नांख. अहो, ज्ञानस्वभावी आत्मा ते परमां शुं करे? ने पर
चीज ज्ञानमां शुं करे? ज्ञानमां विकल्पनुंय कर्तृत्व नथी. आवा ज्ञाननो अनुभव ते ज
मोक्षनुं कारण छे. जीव माने के हुं बीजाने बंधावी दउं,–पण ते जीव तेना रागादिभाव
वगर क्यांथी बंधाशे? –माटे तारो भाव परमां कांई करतो नथी. आम बधेथी छूटो
पडीने ज्ञानमां आवी जा.