Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४९९ : जेठ आत्मधर्म : ३१ :
हुं बीजा जीवना परिणाम बगाडीने तेने बंधनमां नाखी दउं,–पण सामो जीव पोते
सरागरूप परिणाम न करे तो बंधातो नथी, एटले आ जीवनी मान्यता तो नकामी
गई, मिथ्या गई.
आ जीव सामाने बंधन के मुक्ति करवानी मान्यता न करे तोपण सामो जीव
तेना पोताना सरागभावथी बंधाय छे ने वीतरागभाव वडे मुक्त थाय छे; एटले
परनी क्रिया जीवना अध्यवसाय वगर ज थाय छे, आ जीव तेनो कर्ता नथी. ए ज
रीते पर जीव के परवस्तु आ जीवना बंध–मोक्षने करता नथी. माटे हे भाई! परना
कर्तृत्वनी मिथ्याबुद्धि छोडीने, रागथी भिन्न ज्ञाता–द्रष्टा स्वभावरूपे रहे–ए ज
तात्पर्य छे, ए ज मोक्षसुखनो उपाय छे.
भाई, तुं कर्तृत्वबुद्धि न कर तोपण परनां बंध–मोक्ष वगेरे कार्यो तेना पोताना
कारणे थया ज करे छे. अने परमां जे बंध–मोक्ष वगेरे न थता होय त्यां तुं कर्तृत्वनो
मिथ्या अभिप्राय करे तोपण तेने कारणे कांई परमां बंध–मोक्ष तो थतां नथी, आ
रीते तारो भाव परमां अकिंचित्कर छे–नकामो छे; माटे ते मिथ्याभाव छोड, ने रागथी
पार स्व–द्रव्यनो आश्रय कर. स्वद्रव्यनो आश्रय करीने जे ज्ञानरूप परिणम्यो ते
ज्ञानीना ज्ञानमांथी परनुं के रागनुं कर्तृत्व छूटी गयुं छे; एटले ज्ञानभावमां तेने
बंधन थतुं ज नथी.
बापु! जगतनां कोई काम कांई तारा परिणामना आधारे तो थता नथी, माटे
तेनी कर्तृत्वबुद्धि छोडीने तुं तारा ज्ञानभावरूप ज रहे, तारी भावना होय के हुं कोईने
मुक्त करी दउं, –पण ते जीव तेना पोताना सम्यकत्वादि वीतरागपरिणाम वगर
क्यांथी मुक्त थशे? अने ते जीव तेना वीतरागपरिणामवडे मुक्त थयो तो तेमां तें शुं
कर्यु? अने तुं तेवी मान्यता न करे तोपण जे जीवो वीतरागभाव करे छे तेओ मुक्त
थाय ज छे; ने जेओ रागभाव करे छे तेओ बंधाय छे. माटे तुं आखा जगतनो बोजो
तारा ज्ञानमांथी उतारी नांख. अहो, ज्ञानस्वभावी आत्मा ते परमां शुं करे? ने पर
चीज ज्ञानमां शुं करे? ज्ञानमां विकल्पनुंय कर्तृत्व नथी. आवा ज्ञाननो अनुभव ते ज
मोक्षनुं कारण छे. जीव माने के हुं बीजाने बंधावी दउं,–पण ते जीव तेना रागादिभाव
वगर क्यांथी बंधाशे? –माटे तारो भाव परमां कांई करतो नथी. आम बधेथी छूटो
पडीने ज्ञानमां आवी जा.