: ३२ : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
परमागमनी मधुरी प्रसादी
श्रुतपंचमी दिने समयसार–बंधअधिकारना प्रवचनमांथी.
बंधअधिकारमां एम बताव्युं के शुद्धस्वभावरूप
निश्चयनो आश्रय ते ज एक बंधथी छूटवानो मार्ग छे.
पराश्रयरूप जेटलो व्यवहार छे ते बधोय बंधनुं ज
कारण छे. माटे मुमुक्षुए निश्चयनो आश्रय करीने
व्यवहारनो आश्रय छोडवा जेवो छे.
• व्यवहारनो आश्रय करनार जीवने कदी मुक्ति थती नथी; ने निश्चयनो आश्रय
करनारने कदी बंधन थतुं नथी, –आ सर्वसिद्धांतनुं तात्पर्य छे. माटे मुमुक्षुओ
उदार ज्ञानवडे शुद्धनयनो आश्रय करो.
• जेम पर साथे एकत्वबुद्धिरूप अज्ञानमय अध्यवसान छे (पछी ते हिंसादि
अशुभ हो के अहिंसादि शुभ हो)–ते बंधनुं ज कारण छे, तेम परना
आश्रये थता बधा भावो पण बंधनुं ज कारण छे. ते सिद्धांत समजाववा
अभव्यनुं द्रष्टांत आप्युं छे के जेम अभव्यजीवने व्यवहारनो आश्रय
करवा छतां कदी मुक्ति थती नथी तेम व्यवहारना आश्रयवडे भव्यजीवने
पण कदी मुक्ति थती नथी.
• कोई कहे के एकांत व्यवहारनो आश्रय करनार तो न छूटे–पण निश्चयसहित
व्यवहारनो आश्रय करे तो?–तो कहे छे के तेमां पण जेटलो व्यवहारनो आश्रय
छे तेटलुं तो बंधनुं ज कारण छे, अने जेटलो शुद्धनयनो आश्रय छे तेटलुं ज
मोक्षनुं कारण छे.
• वीतराग भगवाने कहेली, रागथी भिन्न ज्ञानना अनुभवरूप जे शुद्धनयनी
आज्ञा, तेने तो अज्ञानी ओळखतो नथी, ने भगवाने कहेलां व्यवहार ज्ञान–
श्रद्धा–आचरण भगवाननी आज्ञा प्रमाणे पराश्रये बराबर पाळे छे, पर
पराश्रय वगरना शुद्धात्माना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रने जरापण जाणतो नथी, तेथी
ते जीवने