Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४९९ : जेठ आत्मधर्म : ३३ :
• मुक्ति थती नथी; केमके मुक्तिनुं कारण तो शुद्धनयनो आश्रय ज छे; व्यवहारनो
आश्रय ते कांई मोक्षनुं कारण नथी. व्यवहारना आश्रयने जे मोक्षनुं साधन
माने तेणे खरेखर भगवाननी आज्ञा मानी नथी.
• अरे, आनंदना धाम चैतन्यनो जेमां अनुभव नहि, ने रागनो ज जेमां
अनुभव,–एने ते साचां श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र कोण कहे? भले शास्त्र भणे,
समयसारादि सांभळे, भगवाने कहेलां तत्त्वोना भेदनी श्रद्धा करे, ने अहिंसादि
शुभभावरूप व्रतो पाळे, पण चैतन्यनी निर्विकल्प शांतिना स्वसंवेदन वगरनो
ते जीव श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रथी शून्य ज छे, मोक्षनुं कारण तेने जरा पण नथी,
एकला बंधभावने ज ते सेवे छे.
• ज्ञान ने श्रद्धा तो तेने कहेवाय के जेनी साथे चैतन्यनी निर्विकल्प शांतिनुं वेदन
होय. आवा श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक ज चारित्र होई शके छे ज्यां श्रद्धा–ज्ञान ज साचां
नथी त्यां चारित्र कदी होतुं नथी. ज्ञान–श्रद्धा पछी ज सम्यक्चारित्र होय छे.
• मोक्ष एटले एकला ज्ञानस्वभावनो अनुभव; जेने आवा शुद्ध ज्ञाननो अनुभव
नथी, शुद्धज्ञाननी श्रद्धा नथी, तेने मोक्षनी ज श्रद्धा नथी. रागना अनुभवने
जेणे मोक्षनुं साधन मान्युं तेणे मोक्षने पण रागरूप ज मान्यो. तद्न राग
वगरनुं जे शुद्धज्ञान–तेना पूर्ण अनुभवरूप मोक्षनी श्रद्धा परना आश्रये थती
नथी. अज्ञानी आम तो शास्त्रअनुसार नव तत्त्वने जाणे तेमां मोक्षतत्त्व पण
आवी जाय, –पण ते तो परलक्षी स्वीकार छे, अंतरमां रागथी जुदो पडीने
ज्ञानना स्वसंवेदनपूर्वक मोक्षने ते श्रद्धतो नथी. –अरे, आवा मोक्षने श्रद्धे तो
रागमां जराय एकत्वबुद्धि रहे नहि. रागमां एकत्वबुद्धि पण रहे अने
रागवगरना मोक्षनी पण साची श्रद्धा थाय–एम बने नहि. मोक्षनी श्रद्धा त्यां
रागमां एकता नहि, ने रागमां एकता त्यां मोक्षनी श्रद्धा नहीं.
• अहो, शुद्ध ज्ञान एटले मोक्ष. जेमां कोई राग नथी, विकल्प नथी, परनो आश्रय
नथी; एकला शुद्धज्ञानना आश्रयवडे निर्विकल्प शांतिना वेदन सहित, जे श्रद्धा–
ज्ञान–चारित्र थया ते राग वगरना छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
• भले थोडुं पण स्वना आश्रयवाळुं स्वना स्वसंवेदनवाळुं ज्ञान होय–ते मोक्षनुं
कारण छे. अने एवा स्वसंवेदन वगर ११ अंगना करोडो श्लोकोनुं भणतर ते