Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४९९ : जेठ आत्मधर्म : ३५ :
नथी. ते व्यवहारना–रागना अभावमां पण शुद्ध आत्माना आश्रये
मुनिभगवंतो मोक्षने साधे छे.
• अरे बापु! एकवार जगतनुं बधुं एककोर मुकीने आ शुद्धज्ञानने लक्षमां ले.
शुद्धज्ञानमां कोई बीजानी अपेक्षा नथी. आवा शुद्धज्ञानमय भगवान आत्मानी
अनुभूति कर... ते अपूर्व छे... ते शास्त्रनुं फरमान छे ने ते ज मोक्षनुं कारण छे.
• अहो, आत्मा सदाय ज्ञानचेतनास्वरूप छे. ते ज्ञानचेतनानो अनुभव ए ज
भूतार्थ धर्म छे. शुभराग वगेरे तो कर्मफळचेतना छे, ते कांई भूतार्थधर्म नथी;
साचो धर्म ते नथी, छूटवाना कारणरूप धर्म ते नथी. छूटवाना कारणरूप धर्म तो
ज्ञानचेतनामय छे. ज्यां चैतन्यनी चेतनाना स्वादनुं वेदन नथी ते जीव शुभ
कर्मने–पुण्यने मोक्षनुं कारण माने छे, साचा धर्मनी तेने श्रद्धा नथी. तेना बधा
परिणाम परसन्मुख ज वर्ते छे, स्वसन्मुख परिणाम तेने थता नथी, एटले
भूतार्थरूप साचो आत्मा तेनी श्रद्धामां आवतो नथी; माटे भले ते शुभरागना
वेदनरूप व्यवहारधर्मने श्रद्धतो होय तोपण ते मिथ्याद्रष्टि ज छे, ते जीव रागना
सेवन वडे बहु तो उपरना ग्रैवेयक सुधीना भोगने पामे छे पण चैतन्यनी
शांतिनो तो अशंपण तेने मळतो नथी. ग्रैवेयकमां जईने त्यां पण ते रागनुं ज
वेदन करे छे, रागथी भिन्न ज्ञानचेतनाना अपूर्व स्वादनी तेने खबर ज नथी.
• ग्रैवेयकमां बहारमां कांई देवी वगेरे नथी, छतां अंदरना शुभ रागना वेदनमां
जेने मीठाश लागे छे तेना अभिप्रायमां रागना फळरूप भोगमां पण सुखबुद्धि
वर्ते ज छे. एककोर चैतन्यसुखनुं वेदन, तेनो ज्यां अभाव त्यां कर्मफळचेतनानुं
वेदन, एम बे भाग पाडीने ज्ञानी–अज्ञानीनी वात समजावी छे. ज्ञानीने
चैतन्यना वेदनमां रागना वेदननो अभाव छे. अज्ञानीने ज्ञानचेतनानुं वेदन
नथी त्यां रागनुं ने भोगनुं ज वेदन छे. ज्ञानना वेदनरूप साचा धर्मने, साचा
मोक्षमार्गने ते जाणतो नथी, श्रद्धतो नथी, आचरतो नथी. अहो, ज्ञायकभावथी
भरेलो चैतन्य आत्मा, तेना निर्विकल्परसनी शांतिनुं वेदन ज्यां थाय छे त्यां
साचा श्रद्धा–ज्ञान–आचरण होय छे, ते ज भूतार्थधर्म अने साचो मोक्षमार्ग छे.
आवो मोक्षमार्ग शुद्धनयवडे अंर्तस्वभावना आश्रये प्रगटे छे. कोई परना
आश्रयवडे आवो मोक्षमार्ग थतो नथी. पराश्रयरूप व्यवहार वडे मोक्षमार्गनो
जराय लाभ थतो नथी.