Atmadharma magazine - Ank 356
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ३६ : आत्मधर्म जेठ : २४९९ :
• माटे शुद्धस्वभावना अनुभवरूप स्वाश्रय वडे, पराश्रयरूप व्यवहार निषेध
करवा जेवो ज छे; ने स्वभावसन्मुख एवो शुद्धनय आश्रय करवा जेवो छे.
ज्यां शुद्धनयनो आश्रय करीने जीव परिणम्यो त्यां तेने पराश्रयरूप व्यवहार
रहेतो ज नथी, एनुं ज नाम व्यवहारनो निषेध छे, पण ‘हुं व्यवहारने छोडुं,’
एवा विकल्पो वडे कांई व्यवहारनो निषेध थतो नथी. अंतरना स्वभावमां
ज्ञान एकाग्र थईने परिणम्युं तेमां रागादिनुं परिणमन रह्युं ज नहि. आवा
शुद्धनयनो आश्रय करनार जीव स्वाश्रयभावे आनंदनुं वेदन करतो करतो
निर्वाणने पामे छे.
वैराग्य समाचार–
• उदेपुरना पं. श्री पवनकुमारजी ता. ५–५–७३ना रोज देव–गुरु–धर्मना
स्मरणपूर्वक स्वर्गवास पाम्या छे.
• मुंबईना भाईश्री शिवलाल जेठालाल शेठ (तेओ भाईश्री खीमचंदभाई शेठना
नाना भाई) ता. १७–५–७३ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
• उमराळाना भाईश्री मगनलाल पोपटलाल चैत्र वद ११ना रोज स्वर्गवास
पाम्या छे.
• गोंडलवाळा सुमनबेन (तेओ प्रीतमलाल ताराचंदना धर्मपत्नी) ता. १४–५–
७३ना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
• राजकोटना मणिलाल जेसंगभाई पुनातर (उ. वर्ष ८१) ता. ३–४–७३ना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे.
• नरशीपुरवाळा शाह छोटालाल पीतांबरदास कलोल मुकामे चैत्र वदी ११ना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे.
• बोटादना बहेन मयुरीबहेन शांतिलाल कामदार (तेओ मंजुलाबेनना मातुश्री)
चैत्रवद छठ्ठना रोज स्वर्गवास पाम्या छे.
–स्वर्गस्थ आत्माओ देव–गुरु–धर्मना शरणे आत्महित पामो.