Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : ७ :
(धर्मात्मानी साची संपदा)
मूढ लोको बाह्यलक्ष्मीने ज सर्वस्व माने छे, ते लक्ष्मी खातर अडधुं
जीवन वेडफे छे ने अनेकविध पाप बांधे, छतां तेमां सुख तो कदी मळतुं
नथी. बापु! ज्ञानादि अनंत चैतन्यरूप तारी साची लक्ष्मी तारा आत्मामां
भरी ज छे, तेने देख! तारी चैतन्यसंपदामां बहारनी अनुकूळता के
प्रतिकूळता केवी? आवी चैतन्यसंपदाना भान वगर साची शांति के
श्रावककपणुं होय नहीं. सम्यग्द्रष्टिनी दशा पुण्य पापथी जुदी होये.
सम्यग्द्रर्शनना प्रतापे त्रणलोकमां श्रेष्ठ संपदारूप सिद्धपद मळे छे, पछी बीजी
कोई संपदानुं शुं प्रयोजन छे? बाह्यसंपदा ए खरेखर संपदा ज नथी.
* * * * *
रत्नकरंड – श्रावकाचार गा. २७ मांश्री समंतभद्राचार्य कहे छे के –
यदि पापनिरोधोन्यसम्पदा किं प्रयोजनम्।
अथ पापास्त्रवोस्त्यन्यसम्पदा किं प्रयोजनम्।।२७।।
धर्मी – श्रावक विचारे छे के, जो मिथ्यात्वादि पापनो निरोध थई गयो छे तो
पछी बीजी संपत्तिनुं मारे शुं काम छे? अने जो पापनो आस्रव थतो होय तो एवी
बीजी संपदानुं मारे शुं काम छे? जे जीव पापनिरोधी छे ते सम्यक्त्वादि अंतरंग
विभूतिवडे स्वयं महान छे, तेने बाह्यसंपदानी जरूर नथी; अने जे जीव पापास्रवी छे
ते अंतरंगमां दरिद्री छे, भले पछी बहारमां ते वैभववाळो होय, – तेनुं कांई ज मूल्य
नथी.
सम्यग्द्रष्टि – श्रावक निष्कांक्षभावथी एम विचारे छे के जो मारी श्रद्धा–ज्ञान
शांतिरूपी आत्मसंपदा मारी पासे छे तो मारे बहारनी संपदानुं शुं काम छे? अने ज्यां
एवी आत्मसंपदा न होय त्यां बाह्यसंपदाना ढगला होय तोपण तेथी शुं? जो मारे
सम्यक्त्वादि वडे आस्रवनो निरोध छे तो तेना फळमां केवळज्ञानादि अनंत चैतन्य