रीते?
एम कोणे जाण्युं? आत्माए के बीजा कोईए? अंधाराने जाणनारो पोते कांई
आंधळो नथी, ए तो जागृत चैतन्यसत्ता छे, ने ते ज आत्मा छे. पहेलांं
चैतन्यवस्तु केवी छे ते बराबर लक्षगत करवी जोईए; पछी तेनो अत्यंत रस अने
अत्यंत महिमा आवतां, परिणाम तेमां एकाग्र थईने, अनुभवमां तेनो साक्षात्कार
थाय छे, ‘आ अंधारुं छे’ एम अंधाराने देख्युं कोणे? अंधारुं पोते पोताने नथी
जाणनारो ‘हुं अंधारुं छुं’ एम नथी जाणतो पण ‘आ अंधारुं छे’ एम जाणे छे,
एटले के अंधाराने जाणनारो अंधाराथी जुदो छे. बस! आ जाणनार तत्त्व ते ज
आत्मा छे, अने अंतर्मुख मति–श्रुतज्ञान वडे आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणी
शकाय छे. बाकी आंख वगेरेथी आत्मा जणाय नहीं. भाई, जे चैतन्यसत्तामां आ
बधुं जणाय छे ते तुं ज छो. तेने अंदर विचारमां ले. अनादिथी पोते पोतानी
चैतन्यसत्तानो विचार कर्यो नथी. जाणनारो पोते ‘हुं जाणनार छुं’ एम पोताना
अस्तित्वने ज न माने – ए आश्चर्य छे.
माटे अंदर उद्यम करवो जोईए. बहारमां पांच–पचास हजार रूपिया मेळववा माटे
केटला प्रेमथी महेनत करे छे? घरबार छोडीने, खावापीवानी मुश्केली वेठीने पण पैसा
कमावा परदेश जाय छे ने दिनरात मजूरी करे छे. तो आ सादिअनंत महान सुख देनारी
पोतानी अद्भुत ज्ञानलक्ष्मी केवी छे? तेने प्राप्त करवा, तेनो अनुभव करवा, अंतरमां
परमसुख देनार छे; बाकी पैसा वगेरे तो धूळ–रजकण छे, ते कांई तारी लक्ष्मी नथी ने
तेमांथी तने कदी सुख मळवानुं नथी.
ए व्याख्या