Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : २७ :
प्रश्न:– आप कहो छो के आत्माने देखो. हवे आंखथी तो आत्मा देखाय
नहीं, ने आंख मींचीए तो अंदर अंधारुं – अंधारुं लागे; तो आत्माने जोवो कई
रीते?
उत्तर: – भाई, ईन्द्रियज्ञानवडे आत्मा न देखाय, अतीन्द्रिय ज्ञानवडे ज
आत्मा देखाय. आंख मींची त्यारे पण ‘आ अंधारुं छे, ने अंधारुं छे ते हुं नथी’ –
एम कोणे जाण्युं? आत्माए के बीजा कोईए? अंधाराने जाणनारो पोते कांई
आंधळो नथी, ए तो जागृत चैतन्यसत्ता छे, ने ते ज आत्मा छे. पहेलांं
चैतन्यवस्तु केवी छे ते बराबर लक्षगत करवी जोईए; पछी तेनो अत्यंत रस अने
अत्यंत महिमा आवतां, परिणाम तेमां एकाग्र थईने, अनुभवमां तेनो साक्षात्कार
थाय छे, ‘आ अंधारुं छे’ एम अंधाराने देख्युं कोणे? अंधारुं पोते पोताने नथी
देखतुं, पण चैतन्यसत्ता देखे छे के आ अंधारुं छे, ने हुं तेने जाणनार छुं. अंधाराने
जाणनारो ‘हुं अंधारुं छुं’ एम नथी जाणतो पण ‘आ अंधारुं छे’ एम जाणे छे,
एटले के अंधाराने जाणनारो अंधाराथी जुदो छे. बस! आ जाणनार तत्त्व ते ज
आत्मा छे, अने अंतर्मुख मति–श्रुतज्ञान वडे आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणी
शकाय छे. बाकी आंख वगेरेथी आत्मा जणाय नहीं. भाई, जे चैतन्यसत्तामां आ
बधुं जणाय छे ते तुं ज छो. तेने अंदर विचारमां ले. अनादिथी पोते पोतानी
चैतन्यसत्तानो विचार कर्यो नथी. जाणनारो पोते ‘हुं जाणनार छुं’ एम पोताना
अस्तित्वने ज न माने – ए आश्चर्य छे.
हे जीव! ज्ञान ते तारुं स्व छे, अंधारुं पर छे. अंधकार अने प्रकाश ए बन्ने
पर्यायो पुद्गलनी छे, तेने जाणनारुं अरूपी ज्ञान आत्मानुं छे. आवा आत्माना निर्णय
माटे अंदर उद्यम करवो जोईए. बहारमां पांच–पचास हजार रूपिया मेळववा माटे
केटला प्रेमथी महेनत करे छे? घरबार छोडीने, खावापीवानी मुश्केली वेठीने पण पैसा
कमावा परदेश जाय छे ने दिनरात मजूरी करे छे. तो आ सादिअनंत महान सुख देनारी
पोतानी अद्भुत ज्ञानलक्ष्मी केवी छे? तेने प्राप्त करवा, तेनो अनुभव करवा, अंतरमां
केटला पेमथी उद्यम करवो जोईए? बापु! तारी साची लक्ष्मी तो आ सम्यग्ज्ञान छे के जे
परमसुख देनार छे; बाकी पैसा वगेरे तो धूळ–रजकण छे, ते कांई तारी लक्ष्मी नथी ने
तेमांथी तने कदी सुख मळवानुं नथी.
ज्ञाननो स्वभाव प्रत्यक्ष एटले एकला आत्माथी जाणवानो छे; जाणवामां
परनुं अवलंबन ल्ये एवो तेनो स्वभाव नथी. आंखथी नजरे देखाय ते प्रत्यक्ष –
ए व्याख्या