Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : अषाढ : २४९९
साची नथी. आंख वगर एकला आत्माथी सीधुं जे ज्ञान थाय ते प्रत्यक्ष छे, ने आंख
वगेरे परनी अपेक्षासहित जे ज्ञान थाय ते तो परोक्ष छे. प्रत्यक्ष ज्ञानमां परनुं
अवलंबन होतुं नथी. अरे, जाणवानो स्वभाव पोतानो, तेमां वळी परना आलंबननी
पराधीनता केवी? परालंबी परोक्ष–ज्ञानवडे आत्मा जणाय नहीं. ईन्द्रियातीत अने
रागथी पार एवा स्वाधीन अतीन्द्रिय ज्ञानवडे आत्मा जणाय छे. स्वाधीन कहो,
अतीन्द्रिय कहो के प्रत्यक्ष कहो, ते ज्ञान स्पष्ट छे, तेनो आरंभ चोथा गुणस्थानथी थई
जाय छे, चोथा गुणस्थाने स्वानुभूतिमां सम्यक् मति– श्रुतज्ञान प्रत्यक्ष होय छे, तेमां
ईन्द्रिय के मन निमित्त नथी. आवुं स्वानुभव प्रत्यक्ष अतीन्द्रिय ज्ञान आठ वर्षनी
बालिकाने पण थाय छे. ते सम्यग्द्रष्टि बालिकाने अंतरमां ध्यानकाळे पोताना ज्ञान–
आनंदमय आत्मानुं वेदन, राग अने ईन्द्रियोनी अपेक्षा वगरनुं छे; ते वखतना
सम्यग्ज्ञानने अध्यात्म शैलीमां प्रत्यक्ष कहेवाय छे. ते ध्यानमां होय त्यारे स्वानुभवमां
पोते पोताना आत्माने तन्मय थईने जाणे छे, त्यारे बहारमां बीजा बधानुं लक्ष छूटी
जाय छे. आ रीते ज्ञान पोते पोतामां एकाग्र थईने अतीन्द्रियपणे आत्माने अनुभवे
छे त्यारे आत्मामां अतीन्द्रिय आनंदरसनी धारा उल्लसे छे. सिंह वगेरे पशुओमां पण
जे जीव सम्यग्द्रष्टि होय ते जीवने आवुं प्रत्यक्ष ज्ञान प्रगट्युं होय छे. तीर्थंकर
परमात्माना समवसरणमां नाग ने वाघ हाथी ने हरण सिंह ने ससलां वगेरे पशुओ
पण आवे छे ने तेमाथी घणा जीवो आवा आत्मानुं स्वरूप ओळखीने प्रत्यक्ष –
अतीन्द्रिय ज्ञानवडे तेनो अनुभव करे छे. महावीर भगवानना आत्माए सिंहपर्यायमां
आवो अनुभव कर्यो हतो, ने पार्श्वनाथ भगवानना आत्माए हाथीनी पर्यायमां आवो
अनुभव कर्यो हतो. ते सिंहने तथा हाथीने पण आवुं प्रत्यक्ष – अतीन्द्रिय ज्ञान हतुं.
अत्यारे पण आ मध्यलोकमां असंख्य पशुओ आवा आत्मज्ञान सहित वर्ते छे.
अहा, सम्यग्ज्ञाननी ताकात तो जुओ! भाई, आवा ज्ञानस्वरूप आत्मा तुं
पोते छो. आ देह के राग ते तुं नथी; अंदर आनंदमय ज्ञानस्वरूप आत्मा छे – ते तुं
छो. आवा आत्मानुं ज्ञान करवानो आ अवसर छे. लंकाना महाराजा रावणनो मुख्य
हाथी ‘त्रिलोकमंडन, ’ , जेने रामचंद्रजी पोतानी साथे अयोध्या लाव्या हता, ते हाथीने
पण आवुं आत्मज्ञान थयुं हतुं, तेम ज पूर्व भवनुं जातिस्मरण ज्ञान पण थयुंहतुं – ए
पण आत्मा छे ने! एनामांय ज्ञानशक्ति भरेली छे; ते पोते स्वसंवेदनवडे प्रत्यक्ष
अनुभवमां लईने तेणे सम्यग्द्रर्शन ने सम्यग्ज्ञान प्रगट कर्युं.