Atmadharma magazine - Ank 357
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 32 of 41

background image
: अषाढ : २४९९ आत्मधर्म : २९ :
आ सम्यग्ज्ञाननुं प्रकरण चाले छे. सम्यक् मति–श्रुतज्ञान स्वसंवेदनकाळे प्रत्यक्ष छे
ने बाकीनां काळमां परोक्ष छे. अवधि अने मनःपर्यय ज्ञान एकदेशप्रत्यक्ष छे, तेओ ईंद्रिय
के मनना निमित्त वगर, अमुक मर्यादित क्षेत्रमां रहेला अमुक ज पदार्थोने तेना अमुक ज
काळने अने अमुक भावोने ज जाणे छे एटले के अधूरा छे; जेटलुं जाणे छे तेटलुं तो प्रत्यक्ष
जाणे छे, पण अधूरुं जाणे छे तेथी तेने देशप्रत्यक्ष कहेवाय छे. श्रुतज्ञानमां तो बधा
पदार्थोने परोक्ष जाणवानी ताकात छे–एम कह्युं छे. श्रुतज्ञानमां घणी ताकात छे, ने
केवळज्ञान तो अद्भुत अचिंत्य महिमावाळुं संपूर्ण प्रत्यक्ष ज्ञान छे. सम्यक् मति –
श्रुतज्ञान बधा सम्यग्ज्ञद्रष्टि–साधकजीवोने होय छे; अवधिज्ञान कोई कोई जीवोने होय छे.
तेमां देशअवधिज्ञान चारेगतिमां होय छे; नरकमां ने देवमां तो बधा सम्यग्द्रष्टिने होय छे,
ने तिर्यंचमां तथा मनुष्यमां कोई कोई जीवोने होय छे. विशेष अवधिज्ञान (परम अवधि
अने सर्वअवधि) तो कोई खास मुनिवरोने ज होय छे; कुअवधिरूप विभंगज्ञान तो देव–
नारकीमां बधा जीवोने होय छे; घणा तिर्यंचो तेमज मनुष्योने पण विभंग ज्ञान होय छे,
ने तेना वडे अनेक द्वीप–समुद्र वगेरेने जाणी शके छे; पण मोक्षमार्गमां तेनी कोई किंमत
नथी; ते कांई वीतराग विज्ञान नथी, ते तो अज्ञान छे. सामान्य बळद वगेरे अज्ञानी
प्राणी पण ज्ञानना कंईक उघाड वडे सामाना मननी वात जाणी ल्ये त्यां अज्ञानीओने
आश्चर्य ऊपजे छे, पण अतीन्द्रिय केवळज्ञानना अद्भुत अचिंत्य सामर्थ्यनी तेने खबर
नथी, अरे! सम्यग्द्रष्टिना स्वसंवेदनमां अतीन्द्रिय मति–श्रुतज्ञाननी कोई अपार ताकात
छे तेनी पण तेने खबर नथी. ज्ञान तो कोने कहेवाय? – के जे रागथी पार थईने
आनंदरसमां तरबोळ थयुं छे – एवुं ज्ञान ते ज ज्ञान छे, ते वीतरागविज्ञान छे ने ते
मोक्षनुं कारण छे. मनःपर्ययज्ञान पण कोई विशिष्ट ऋद्धिधारी मुनिओने ज होय छे, ने
तेमांय विपुलमति मनःपर्ययज्ञान तो चरमशरीरी मुनिवरोने ज होय छे. केवळज्ञानरूप
महा प्रत्यक्ष ज्ञान अरिहंत अने सिद्धभगवंतोने होय छे. –आ रीते पांच प्रकारनुं
सम्यग्ज्ञान जाणीने तेनी आराधना करो.
केवळज्ञान प्रगट करीने जेओ परमात्मा थया तेओ, पहेलांं अनादिथी तो
बहिरात्मा हता; तेमणे पहेलांंतो सम्यग्द्रर्शन कर्युं, तेनी साथे मति श्रुतरूप सम्यग्ज्ञान
थयुं; एटले बहिरात्मपणुं छोडीने तेओ अंतरात्मा थया, पछी शुद्धोपयोग वडे स्वरूपमां
लीन थईने चारित्ररूप मुनिदशा साधी. तेमां कोईने अवधि–मन: पर्ययज्ञान प्रगटे छे ने
कोईने नथी पण प्रगटता; – तेनी साथे मोक्षमार्गनो संबंध नथी. पछी