के तेओ अरिहंत परमात्मा थया. ते परमात्मा दिव्यशक्तिवाळा केवळज्ञान वडे
त्रणलोक–त्रणकाळने एक साथे प्रत्यक्ष जाणे छे. ‘नमो अरिहंताणं’ कहेता आवा
केवळज्ञाननी प्रतीत साथे आववी जोईए, तो ज अरिहंतदेवने साचा नमस्कार
थाय. पंचपरमेष्ठीमां अरिहंतभगवान तथा सिद्धभगवान केवळज्ञानी छे.
सीमंधरभगवान वगेरे लाखो अरिहंतभगवंतो अत्यारे पण आ मनुष्यलोकमां
विचरी रह्या छे. आवा केवळज्ञाननी प्रतीत आत्माना ज्ञानस्वभावनी प्रतीतपूर्वक
थाय छे. एवुं केवळज्ञान केम थाय? – के सर्वज्ञस्वभावी आत्माना सम्यग्दर्शन–
ज्ञानपूर्वक तेनो अनुभव करतां करतां केवळज्ञान थाय छे, बीजा कोई उपायथी
केवळज्ञान थतुं नथी. पहेलांं सम्यग्ज्ञान पण शुभरागथी नथी थतुं पण राग
वगरना आत्माना अनुभवथी ज थाय छे; ने पछी केवळज्ञान पण रागरहित
आत्माना अनुभवमां एकाग्रतारूप शुद्धपयोगवडे ज थाय छे. – आम ओळखे तो
ज केवळज्ञानने ओळख्युं कहेवाय. रागवडे ज्ञान थवानुं माने तेणे केवळज्ञानने के
एककेय ज्ञानने ओळख्युं नथी; तेणे तो ज्ञान अने रागनी भेळसेळ करीने
केवळज्ञानने पण रागवाळुं मान्युं; केमके रागने कारण मान्युं तो तेनुं कार्य पण
रागवाळुं ज होय. – पण ज्ञान अने रागनी अत्यंत भिन्नता जाणीने
ज्ञानस्वभावनो अनुभव करवो ते ज केवळज्ञाननुं कारण छे – एम धर्मी जीवो
जाणे छे, ने तेओ ज्ञान साथे रागनी जरापण भेळसेळ करता नथी;
वीतरागविज्ञानवडे तेओ केवळज्ञानने अने मोक्षसुखने साधे छे.
सन्मुखताथी ज थाय छे. ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थतां रागथी जुदो पड्यो एटले
पोतामां भेदज्ञान थईने सम्यग्ज्ञान थयुं, त्यां सर्वज्ञनी पण साची ओळखाण थई.
ते ज्ञान साथे राग वगरनुं वीतरागी सुख पण भेगुं ज छे. सम्यक्मति–श्रुतज्ञान
ते रागथी भिन्न केवळज्ञाननी जातना ज छे, तेओ केवळज्ञान साथे केलि करनारा
छे.
मरणनां दुःखोने मटाडनारुं ने मोक्षसुख देनारुं परम अमृत छे.