Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
परमागमनी मधुरी प्रसादी
स्वानुभूतिना ऊंडाणमांथी नीकळेला चैतन्यस्पर्शी न्यायो...
एना वाच्यने लक्षगत करतां अमृतसागर ऊल्लसे छे.
[गुरुदेवना प्रवचनोमांथी दोहन]
* आत्माना परमस्वभावनुं अवलंबन करतां समस्त परभावो छूटी जाय छे.
आत्माना अवलंबनरूप जे ध्यान छे ते ज सर्व परभावना अभावरूप होवाथी,
सर्वस्व छे एटले के ते ध्यानमां सामायिक प्रतिक्रमणादि सर्वे धर्मो समाय छे.
* आत्माना परमस्वभावना अवलंबन वगर परभावनो त्याग थई शके नहि.
आनंद मूर्ति आत्मामां एकाग्र थतां जे शुद्धता थई तेमां परमार्थ व्रत–तप वगेरे
बधा आचार समाई जाय छे.
* अहा, चैतन्यवस्तु कोने कहेवाय? अनंत स्वभावथी भरेलो आत्मा,–जेनुं
अवलंबन करता कोईपण परभाव न रहे, ने अनंता गुणो निर्णय भावरूपे
परिणमे, एवो महान पदार्थ आत्मा छे. तेमां स्वसन्मुख थयेली पर्यायमां
अनंत धर्मो समाय छे.
* पोतानुं निजतत्त्व, परमभावथी परिपूर्ण, तेने जाणीने तेनुं अवलंबन लेवुं ते
अपूर्व धर्म छे. जीवे कदी पोताना निजतत्त्वनुं अवलंबन पूर्वे लीधुं न हतुं,
परना ज अवलंबने शुभ–अशुभ परभाव ज कर्यां हता; ते परभावमां क्यांय
धर्म के शांति नथी. आसन्न भव्य जीव अंतर्मुख थईने पोताना परमतत्त्वने
ध्यावे छे – तेमां एकाग्र थाय छे – तेने स्वना अवलंबने शुद्धता थतां अत्यंत
अल्पकाळमां मोक्षदशा प्रगटे छे.
* तारे सम्यक्त्वादि क्षायिकभाव प्रगट करवो होय, उपशमभाव प्रगट करवो होय,
तो अंतरमां तारा परमस्वभावने लक्षमां लईने तेमां पर्यायने एकाग्र कर.
भेदना पर्यायना अवलंबने कांई शुद्धता थती नथी. अभेदस्वभावना
अवलंबनरूप ध्यानमां बधा धर्मो समाय छे.