: १० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
द्रव्यश्रुतनुं वांच्य समाय छे, केमके बधाय श्रुतनो सार तो शुद्धात्मा छे. जे
ज्ञानमां शुद्धात्मानुं चलण चाले छे, शुद्धात्मसन्मुख थईने तेने जे ज्ञान वेदे छे,
ते ज्ञान रागादिभावोथी जुदुं ज रहेतुं थकुं तेने परभावरूपे जाणे छे. जेटलुं
कर्मफळनुं वेदन छे तेने पण ज्ञान जाणे छे, पण ज्ञान ते वेदनमां तन्मय थतुं
नथी. ज्ञान पोते शांतिमां तन्मय रहीने, रागादि कषायोने दुःखरूप जाणे छे.
जेटलो राग छे. ते तो ज्ञानीनेय दुःखरूप ज छे; ते वखते रागथी जुदुं जे ज्ञान
शुद्धात्माने जाणतुं वर्ते छे ते ज्ञानमां आनंदनी लीला छे, तेमां दुःख नथी, ते
दुःखने वेदतुं नथी. आम बंने धारा जुदी जुदी वर्ते छे, तेने जेम छे तेम जाणवा
योग्य छे.
* जे भावश्रुतज्ञान शुद्धात्माने पोताना स्वरूपे जाणे ते रागादिभावोने पोताना
स्वरूपे केम जाणे? आनंदकंद एवो चैतन्यहीरलो ज्यां हाथ आव्यो त्यां रागादि
मलिनभावोने हाथमां कोण पकडे? निर्विकारी भावमां विकारनुं वेदन केम होय?
निर्विकार ज्ञानमां विकारना वेदननी अयोग्यता छे. चैतन्यना मधुर रसमां
कर्मनो रस केवो? चैतन्यसन्मुख थईने तेने जाणनारुं ज्ञान तो चैतन्यना रसने
ज वेदे छे, रागना रसने ते वेदतुं नथी. राग वखते शुद्धात्मज्ञान जीवतुं छे,
ज्ञाननी हयाती छे. – ते ज्ञाननी अपेक्षाए तो ज्ञानी मुक्त ज छे... तेनी पर्याय
मिथ्यात्व रागादिभावोथी छूटी छे एटले ते मुक्त ज छे (जुओ समयसार
कळश १९८)
* अहा, पंचमकाळमां पण वीतरागी अमृतनी नदी चाली रही छे. भगवाने जे
उपदेश आप्यो ते झीलीने, कुंदकुंदस्वामीए भरतक्षेत्रमां तेनो प्रवाह वहेवडाव्यो
छे... ते प्रवाह अत्यारे पण चाली रह्यो छे. अहो, एना महिमानुं शुं कहेवुं?
जिनमंदिरोने सूचना –
• जिनमंदिरमां चामडानी कोई पण वस्तु (वाजिंत्र वगेरे पण) राखवी न जोईए,
वाजिंत्रमां वपरातुं चामडुं घणुं अशुद्ध होय छे, ढोरना पेटनी अंदरना होजरीना
• बीजुं रातना अंधाराना भागमां पूजनसामग्री–अभिषेक वगेरे क्रियाओ
करवानो बधा श्रावकाचारमां स्पष्ट निषेध छे. जेम रात्रिभोजननो निषेध छे तेम
रात्रिना भागमां पूजन – अभिषेकनो पण निषेध छे. शुद्ध आम्नाय जाळववा
अने त्रसहिंसाथी बचवा आ बाबत पण ध्यानमां लेवी जरूरी छे. सूर्योदय पछी
ज ते क्रियाओ करवी जोईए.