Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : ११ :
कलकत्ता शहेरमां जन्मजयंती वखते त्यांना उत्साही बाळकोए
एक सचित्र रंगबेरंगी हस्त लिखित ‘ज्ञानबीज’ नामनो अंक
गुरुदेवने अर्पण करेल, तेमांथी थोडोक नमूनो अहीं आप्यो छे.
बाळकोनो उत्साह अने भावा प्रशंसनीय छे. – ब्र. ह. जैन
* हे गुरुदेव! आत्मसाधनाना प्रयत्नथी भरेलुं आपनुं जीवन आत्मार्थीओने माटे
एक आदर्शरूप छे. आत्मानी साधना ए जगतनुं सर्वोत्कृष्ट अभिनंदनीय
कार्य छे.
* बंधुओ, भगवाननो सर्व उपदेश “मां समाय छे. ते “ द्वारा गुरुदेव आपणने
एम कहे छे के “ना वाच्यरूप शुद्धात्मा, तेनी तमे स्वानुभूति करो.
जेम ओम मां बधी भाषा समाय छे तेम स्वानुभूतिमां आत्माना बधा
धर्मो समाय छे. स्वानुभूति ते ज ज्ञानबीज छे.
* हे गुरुदेव! आपे अनेक आत्मार्थीओने आत्मजीवन आप्युं छे. आत्मार्थी
बाळकोना आप जीवनरक्षक छो. परमवात्सल्यथी आप अमने मोक्षमार्ग प्रत्ये
दोरी रह्या छो. ... आपश्रीना ऊंडा– ऊंडा पवित्र अध्यात्मजीवनने ओळखवानी
अने तेने अनुसरवानी अमने शक्ति आपो.
* सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनो आपो छो उपदेश;
मिथ्यात्वनो ध्वंस करावा आपो छो आदेश;
जैनधर्मनो मर्म समजावी दूर कर्युं अज्ञान,
भवसागरथी तरवा अमने आप्युं सम्यग्ज्ञान.
* हे नाथ! तमारी वाणी द्वारा चैतन्यना अमृतनुं रसपान करतां अमने मोक्ष
जवानी एवी लगनी लागी छे के हवे आ राग–द्वेषथी भरेला संसारमां एक
क्षण माटे पण रहेवुं गमतुं नथी. आपे अमने साचुं स्वरूप बताव्युं छे.