
मोह–मायाथी भरेला आ संसारथी विरक्त थई गयुं छे. हवे तो एम ज थाय
छे आनंद.... आनंद..... आनंदथी भरपूर एवा मोक्षनी प्राप्ति करी लउं.
मळी जशे. ’ – बालमंडळना बाळकोए गुरुदेवना आ कथनने बराबर लक्ष्य
बनाव्युं छे.
अरिहंत बनवानी उत्कंठा सेवतो होय! एवुं अनुपम द्रश्य थई जाय छे.
परिचयमां आव्या..... अने आपणे बधा साधर्मी भाई – बेनो छीए तेवी
ऊंची भावना पेदा थई. साधर्मी बंधुओ प्रत्येनी अपार लागणी ए पण
आपणा उमदा संस्कारनुं कारण छे.
तो तेओ केटलुं सुंदर कार्य करी शके छे! ने जैनशासनना विकासमां केवो सुंदर
फाळो आपी शके छे! तेनुं आ एक उदाहरण छे. माटे ज वारंवार कहेवामां आवे
छे के –
समाजनां सौ बाळने आपो तत्त्वनुं ज्ञान.
घणी जागृत छे. तेमां खूब आगळ वधवा माटे आ आध्यात्मिक अंक
(ज्ञानबीज) बहार पाडेल छे. तेनी अंदर, धार्मिक संस्कारनुं सींचन थाय अने
वीतरागभाव जगाडे एवा विषयोनो संग्रह कर्योछे. जिनवरनां सौ संतान श्रद्धा
– ज्ञान – चारित्रना हलेसाद्वारा भवसमुद्रने तरीने मोक्षमां सादि – अनंत
भगवाननो साथ पामे... ए ज अभ्यर्थना. – जय जिनेन्द्र.