साथे ने साथे रहीने, आपनी मंगळ छायामां आपना आशीर्वादथी सम्यक्त्वादि
आत्मलाभने प्राप्त करीए, ने चोरासीना फेराथी छूटीए... एवी प्रार्थना
करीए छीए.
अभेदपिंडमां वास; बहार शीतळ हवाथी लहेरातुं वातावरण, अंदरमां ऊठती
शांतपरिणतिनी शीतळ लहरीओ; बहारमां धन – वस्त्र घरबारनो त्याग,
अंदर शुद्ध रत्नत्रयनां महा निधान; बहारमां शत्रु – मित्र प्रत्ये समभाव. अंदर
अनंत गुणनी अभेद परिणतिरूप समभाव; केवी – अद्भुत छे – आ
जैनमुनिनी दशा! एवा मुनिने अमारा लाखो – करोडो वंदन होजो.
पंच महाव्रतके हो धारी, तीन रतनके बने भंडारी.
छे; तेमने कदी एम एकलापणुं नथी लागतुं के तेओ वनमां रहे छे.... तेमने तो
एम ज छे के अमे अमारा निज अंतरमां अनंतगुणना कुटुंब साथे आनंदथी
रहीए छीए. आ रीते मुनि निजधाममां ज वास करीने निज आत्मवैभवने
भोगवे छे; बहारना वैभव साथे तेमने कांई ज संबंध नथी. आवा मुनिवरो
निस्पृहपणे जगतना जीवोने आत्महितनो उपदेश आपे छे. –जाणे अमृत झरतुं
होय! आवा आत्मवैभवधारी मुनिवरोने कोटिकोटि वंदन......अने आपणे पण
एवी मुनिदशा प्राप्त करीए एवी अंतरनी भावना.
थईने पण तुं एक भीखारीनी जेम पर पासेथी सुख लेवा माटे शुभाशुभ
भावो पाछळ केम फरी रह्यो छे! अनादि काळथी तारा खरा स्वरूप तरफ तें
ध्यान नथी दीधुं.