Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 16 of 49

background image
: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : १३ :
ननुं महान सौभाग्य छे के अमे आपना परिवारना थया. हवे सदाय आपनी
साथे ने साथे रहीने, आपनी मंगळ छायामां आपना आशीर्वादथी सम्यक्त्वादि
आत्मलाभने प्राप्त करीए, ने चोरासीना फेराथी छूटीए... एवी प्रार्थना
करीए छीए.
* अहो, मुनिराजनी दशा! वन – जंगलनी वच्चे वास, अंतरमां अनंतगुणोना
अभेदपिंडमां वास; बहार शीतळ हवाथी लहेरातुं वातावरण, अंदरमां ऊठती
शांतपरिणतिनी शीतळ लहरीओ; बहारमां धन – वस्त्र घरबारनो त्याग,
अंदर शुद्ध रत्नत्रयनां महा निधान; बहारमां शत्रु – मित्र प्रत्ये समभाव. अंदर
अनंत गुणनी अभेद परिणतिरूप समभाव; केवी – अद्भुत छे – आ
जैनमुनिनी दशा! एवा मुनिने अमारा लाखो – करोडो वंदन होजो.
कायासे ममताको टारी, करते सहन परिसह भारी,
पंच महाव्रतके हो धारी, तीन रतनके बने भंडारी.
आत्मस्वरूपमें झुलते... . करते निज आतम उद्धार....... कि तुमने छोडा सब संसार.
* वनमां रहेता होवा छतां मुनिनो साचो वास तो अनंतगुणधाम निज आत्मामां
छे; तेमने कदी एम एकलापणुं नथी लागतुं के तेओ वनमां रहे छे.... तेमने तो
एम ज छे के अमे अमारा निज अंतरमां अनंतगुणना कुटुंब साथे आनंदथी
रहीए छीए. आ रीते मुनि निजधाममां ज वास करीने निज आत्मवैभवने
भोगवे छे; बहारना वैभव साथे तेमने कांई ज संबंध नथी. आवा मुनिवरो
निस्पृहपणे जगतना जीवोने आत्महितनो उपदेश आपे छे. –जाणे अमृत झरतुं
होय! आवा आत्मवैभवधारी मुनिवरोने कोटिकोटि वंदन......अने आपणे पण
एवी मुनिदशा प्राप्त करीए एवी अंतरनी भावना.
* हे आत्मा! तुं अनंत गुणोना वैभवथी भरेलो चैतन्यराजा छो. चैतन्यराजा
थईने पण तुं एक भीखारीनी जेम पर पासेथी सुख लेवा माटे शुभाशुभ
भावो पाछळ केम फरी रह्यो छे! अनादि काळथी तारा खरा स्वरूप तरफ तें
ध्यान नथी दीधुं.
सिद्ध भगवानने जो! तेओ पोतानी मोक्षदशामां बिराजी रह्या छे ने
परम सुख म्हाली रह्या छे. ते पण तारी जेम ज अनंत गुणना पिंड