Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
आत्मा छे, तेमणे पोताना खरा स्वरूपने ओळखीने ते प्रगट करी लीधुं छे.
सुखी थवा माटे तुं पण एम कर.
* हे भव्य जीव! तारा आत्मामां अने सिद्धभगवंतोना आत्मामां जराय तफावत
नथी; तो पछी सिद्धभगवंतो शा माटे मोक्षसुखमां, ने तुं शा माटे संसार
दुःखमां! तेनो विचार कर. तेनुं कारण ए ज छे के सिद्ध भगवंतोए पोताना
आत्मानुं साचुं स्वरूप ओळखीने पोतानुं साचुं सुख प्रगट कर्युं छे; ज्यारे तुं
सुख प्रगट करवा तारा साचा स्वरूप तरफ ध्यान न आपतां परनी पासेथी
आशा राखी रह्यो छे. परनी सामे ध्यान राखवाथी सुख कदापि प्राप्त थवानुं
नथी – केमके तेमां तारुं सुख नथी. सुख नथी. सुख त्यारे ज प्राप्त थाय के ज्यारे
जीव पोताना आत्माना साच स्वरूपने ओळखे अने तेमां एकाग्र थईने ते
प्रगट करे.
* हे जीव! तुं एम समजे छे के परनी सामे जोवाथी सुखनी प्राप्ति थाय छे, पण ते
खोटुं छे. तारो आत्मा परम सुखनो दरियो छे, तेमां जोतां सुख थाय छे.
तुं चैतन्यराजा सुखसमृद्धिथी भरपूर होवा छतां, परनी पाछळ पड्यो छे
ने पर पासे सुखनी भीख मांगी रह्यो छे, – ए एक घणी ज दुःखदायक अने
घणी ज शरमजनक वात छे.
परमांथी तने सुख मळे ए त्रणकाळमां शक््य नथी. ज्यारे ते शक्य नथी
तो शा माटे नकामो पर पासे भीख मांगवा जाय छे? तारे तो तारा चैतन्यपूर्ण
आत्माने ओळखीने तेने अनुभववो जोईए.–तेथी तने पण सिद्ध भगवंतोनी
जेम पूर्णसुखनी प्राप्ति थशे. परमांथी सुख लेवानुं–के जे अशक््य छे–तेनी पाछळ
नकामी जींदगी गुमाववा करतां, स्वमांथी सुख लेवानुं – के जे शक््य छे – तेनो
उद्यम कर ने! अत्यारे समय छे माटे झट करी ले.
* एक माणसनी तिजोरीमां करोडो सोनामहोर पडी छे, पण तेनुं भान न होवाथी
तेनो दीकरो बहारना माणसो पासे भीख मांगे छे, पोतानी तिजोरीमां ज जे
मिल्कत छे ने जेनो पोते मालिक छे – तेनी तेने खबर नथी. तेम आत्मा पण
पोतानी पासे अंतरमां अनंतगुणनी संपत्ति भरी होवा छतां, पोतानी संपदानी
तेने खबर नथी एटले सुख – शांति – ज्ञान आनंद माटे ते बहारना