सुखसंपत्ति छे तेने भोगवतो नथी.
सोनामहोरोना ढगला छे. जो आ तिजोरीमां सोनामहोरो भरी छे ते तारी ज
छे, तुं ज तेनो मालिक छो. –ते सांभळीने अने पोतानी अपार संपत्ति देखीने ते
केवो आनंदमां आवी जाय छे! तेम अहीं जीवना परम हितस्वी ज्ञानी संतो
अनंत चैतन्यसंपदाने देखीने कहे छे के हे जीव! तुं गरीब दुःखी नथी,
ज्ञानसुखनी अनंत संपत्ति तारामां भरी छे. जे सुख मेळववा माटे तुं बहारमां
परवस्तुमां फांफां मारे छे ते तो तारामां ज भरपूर भर्युं छे. जे अनंत ज्ञान –
सुखस्वभाव छे ते तारो ज छे, तुं ज तेनो मालिक छो. बहार क््यांय शोधवा
जवुं पडे तेम नथी, अंदर तारामां ज देख. अहा! ज्ञानी – संतोनी आ वात
सांभळतां ने पोतानी अनंत चैतन्यसंपदा पोतामां देखतां जीवने केवो अदभुत
महान परम आनंद थाय छे!
ज्ञायकभावथी भरेलो परम आनंदथी पूरो, अने ईंद्रियोथी पार एवो महान
अतीन्द्रिय पदार्थ आत्मा पोते छे. आवा महान चैतन्यनी अनुभूतिथी ऊंचुं के
सुंदर जगतमां बीजुं कांई ज नथी.
उपर करवो?
भिन्न ज्ञानरूपे जे परिणम्यो तेणे ज ज्ञानीनी साची सेवा करी.
राग ते दुःख छे... ते सुखनो मार्ग नथी.