Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : १प :
विषयोनी ने रागनी रुचि करीने तेनी पासे भीख मांगी रह्यो छे, पोतामां ज जे
सुखसंपत्ति छे तेने भोगवतो नथी.
जेम ते करोडपतिना दीकराना कोई संबंधी–हितस्वी, के जेने तेनी मूडीनी
खबर छे, ते तेने कहे के भाई, तुं धन वगरनो नथी, तारी पासे तो
सोनामहोरोना ढगला छे. जो आ तिजोरीमां सोनामहोरो भरी छे ते तारी ज
छे, तुं ज तेनो मालिक छो. –ते सांभळीने अने पोतानी अपार संपत्ति देखीने ते
केवो आनंदमां आवी जाय छे! तेम अहीं जीवना परम हितस्वी ज्ञानी संतो
अनंत चैतन्यसंपदाने देखीने कहे छे के हे जीव! तुं गरीब दुःखी नथी,
ज्ञानसुखनी अनंत संपत्ति तारामां भरी छे. जे सुख मेळववा माटे तुं बहारमां
परवस्तुमां फांफां मारे छे ते तो तारामां ज भरपूर भर्युं छे. जे अनंत ज्ञान –
सुखस्वभाव छे ते तारो ज छे, तुं ज तेनो मालिक छो. बहार क््यांय शोधवा
जवुं पडे तेम नथी, अंदर तारामां ज देख. अहा! ज्ञानी – संतोनी आ वात
सांभळतां ने पोतानी अनंत चैतन्यसंपदा पोतामां देखतां जीवने केवो अदभुत
महान परम आनंद थाय छे!
* वाह रे वाह! आत्मा तुं साचो महात्मा छो...... ज्ञायक ते जगतनो नायक छे.
ज्ञायकभावथी भरेलो परम आनंदथी पूरो, अने ईंद्रियोथी पार एवो महान
अतीन्द्रिय पदार्थ आत्मा पोते छे. आवा महान चैतन्यनी अनुभूतिथी ऊंचुं के
सुंदर जगतमां बीजुं कांई ज नथी.
* आत्मानी आनंदसाधनामां जगतनी कोई वस्तु बाधक थती नथी तो क्रोध कोना
उपर करवो?
आत्मानी आनंदसाधनामां जगतनी कोई वस्तु सहायक थती नथी तो
राग कोना उपर करवो?
* ज्ञानीनी सेवा राग वडे थती नथी, ज्ञानीनी सेवा ज्ञानवडे ज थाय छे. रागथी
भिन्न ज्ञानरूपे जे परिणम्यो तेणे ज ज्ञानीनी साची सेवा करी.
* मोक्ष एटले सुख.... तेनो मार्ग ते पण सुख.
राग ते दुःख छे... ते सुखनो मार्ग नथी.