समुद्र उल्लसे छे. बापु! आ जींदगीनुं आयुष्य तो मर्यादित छे ते क्षणेक्षणे घटतुं जाय छे,
ने तारो वखत बहारनां काममां चाल्यो जाय छे. करवानुं आ खरूं काम बाकी रही जाय
छे, – तो जीवनमां तें शुं कर्युं? अरे, आत्माना कल्याण वगर जीवनुं चाल्युं जाय तो ते
शुं कामनुं? आत्मानुं सम्यक् ज्ञान करवुं ते ज्ञाननी खरी कळा छे, ते जीवनमां करवा
जेवुं काम छे ने ते ज भणवा जेवुं भणतर छे. आत्माना अतीन्द्रिय आनंदने स्पर्शीने
जे ज्ञान प्रगट्युं ते ज्ञान मोक्षने साधे छे. चोथा गुणस्थाने सम्यग्द्रर्शन ने सम्यग्ज्ञानमां
आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद छे. जेम क्षीरणसागर ते दूधनो दरियो छे. (एनुं पाणी ज
दूध जेवुं छे) तेम चैतन्यसमुद्र आत्मा ते आनंदनो महा समुद्र छे, तेमां सन्मुख थतां
आनंदना हीलोळा पर्यायमां ऊंछळे छे. जे आनंदनो दरियो होय तेना मोजां पण
आनंदरूप ज होय ने? वीतरागचारित्रवत मुनिओ.... ते तो सिंह जेवा संतो,
चैतन्यना आनंदनी मस्तीमां मस्तपणे वनमां वसता होय छे. अंदर चैतन्यरसनो
स्वाद लेवामां अविचलपणे एवा चोंटया छे के उपसर्गादिथी पण डगता नथी. अहा,
चैतन्यना आनंदने साधनारा आवा संतोने नमस्कार छे. सम्यग्द्रष्टि ने पण आत्माना
आवा आनंदनो अनुभव छे; भले थोडो, पण मुनि जेवा अतीन्द्रिय आत्म आनंदनो
स्वाद सम्यग्द्रर्शनमां धर्मीने आव्यो छे. वाह, धन्य अवतार! आत्माना आनंदने
साधीने एणे अवतारने सफळ कर्यो छे.
आत्मा, तेमांथी सम्यक्त्वना कळश भरी–भरीने आनंदजळथी तारा आत्मानो
अभिषेक कर....आनंदना समुद्रमां आत्माने तरबोळ कर. भाई, अत्यारे आवा
कल्याणनो अवसर छे. अहा, सीमंधर परमात्मा पासेथी आवो ऊंचो माल लावीने
कुंदकुंदाचार्यदेवे आ भरतक्षेत्रेना जीवोने आप्यो छे. धर्मना आडतिया तरीके आवो
ऊंचो माल लाव्या छे. अहो, भरतक्षेत्रना संत....तेमणे सदेहे विदेशक्षेत्रनी यात्रा
करीने साक्षात परमात्माना भेटा कर्यां; तेमणे बतावेलो आ मार्ग छे. तेओ
भरतक्षेत्रमां जैनशासननी प्रभावना करनारा महान संत छे. तेमणे दर्शावेलो मार्ग
अत्यारे चाली रह्यो छे.