: २४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
साचा कर्तव्यनी प्रेरणा
जीववुं होय तो रत्नत्रय – जीवन जीवो.....राग–जीवन नहीं.
करवुं होय तो आत्महितनुं कार्य करो.....संसारनुं नहीं.
भोगववुं होय तो वीतरागी – आनंदने भोगवो.....विषयोने नहीं.
वसवुं होय तो निजस्वरूपमां वसो.....शरीरमां नहीं.
मरवुं होय तो समाधि–मरणे मरो.....अज्ञानथी नहीं.
जोवुं होय तो निजस्वरूपने जुओ.....सिनेमा नहीं.
लडवुं होय तो मोहसामे लडो.....पाडोशी सामे नहीं.
रक्षा करवी होय तो आत्मभावनी रक्षा करो.....रागनी नहीं.
रहेवुं होय तो स्वसमयमां रहो.....परसमयमां नहीं.
सेवा करवी होय तो जैनधर्मने सेवो.....अन्यने नहीं.
वांचवुं होय तो वीतराग – साहित्य वांचो.....रागपोषक नहीं.
भणवुं होय तो वीतरागविज्ञान भणो.....कुविद्या नहीं.
चिंतन करवुं होय तो निजस्वरूपने चिंतवो.....संसारने नहीं.
पूजवा होय तो वीतरागदेवने पूजो.....रागने नहीं.
छोडवुं होय तो रागनुं कर्तृत्व छोडो.....निजभावने नहीं.
ग्रहवुं होय तो निजभावने ग्रहो.....परभावने नहीं.
मानवुं होय तो सत्मार्गने मानो.....असत्ने नहीं.
परणवुं होय तो निजपरिणतिने परणो.....अन्यने नहीं.
लगनी करवी होय तो मोक्षनी करो.....बीजानी नहीं.
शांति जोईती होय तो स्वमांथी ल्यो.....परमांथी नहीं.
स्वतंत्र थवुं होय तो स्वने आधीन थाओ.....परने नहीं.
सुखी थवुं होय तो रत्नत्रयधर्मने साधो.....धनने नहीं.
राजी थवुं होय तो चैतन्यराजाने रीझवो.....परने नहीं.
डुबवुं होय तो चैतन्यसमुद्रमां डुबो.....भवसमुद्रमां नहीं.
दीवाळी करवी होय तो चैतन्यदीवडा प्रगटावो.....जड नहीं.
होळी करवी होय तो आठकर्मनी करो.....लाकडानी नहीं.
परमात्मा थवुं होय तो परमतत्त्वने आराधे.....परने नहीं.
मोक्षमां जवुं होय तो रत्नत्रयमार्गे चालो.....रागमार्गे नहीं.