संबंध नथी; आत्माने जाणनारुं सम्यग्ज्ञान पोते ज सुखनुं कारण छे. आत्माना
अतीन्द्रिय सुखना अनुभवसहित ज सम्यग्ज्ञान प्रगट्युं छे, ने ते पोते ज परम सुखथी
भरेलुं छे. आत्मामां ज्ञानना परिणमन साथे सुखनुं परिणमन पण भेगुं ज छे.
सम्यग्ज्ञाननी अंदर तो चैतन्यना अनंत भावो भर्या छे. अहा, सम्यग्ज्ञाननी किंमतनी
जगतने खबर नथी. सम्यग्ज्ञान जेवुं सुखकारी त्रणकाळ त्रणलोकमां बीजुं कोई नथी.
पहेलां सम्यग्द्रर्शनना प्रकरणमां कह्युं हतुं के –
तारा आत्मानुं सम्यग्ज्ञान कर. आनंदनी उत्पत्ति तारा सम्यग्ज्ञानमां छे; कुटुंबमां –
पैसामां – शरीरमां क््यांय आनंद मळे तेम नथी. आत्माना सम्यग्ज्ञान वगर देवलोकना
देवो पण दुःखी छे, त्यां बीजानी शी वात? शुभराग, पुण्य अने तेनुं फळ – ए बधुंय
आत्माना ज्ञानथी जुदुं छे; ते रागमां, पुण्यमां के पुण्यफळमां क््यांय जे सुख माने तेने
साचा ज्ञाननी के साचा सुखनी खबर नथी, ज्ञानना ने सुखना बहाने ते अज्ञानने
तथा दुःखने ज सेवे छे. बापु! सुख अने ज्ञान तो तारो स्वभाव छे, तेने ओळख, तो
ज सम्यग्ज्ञान अने अतीन्द्रिय सुखनो अनुभव थाय. अतीन्द्रिय ज्ञानमां जे सुख छे
तेवुं सुख ईन्द्रपदमां नथी, चक्रवर्तीपदमांय नथी, के जगतमां बीजे क््यांय नथी, एटले के
ज्ञान सिवाय बीजे क््यांय सुख छे ज नहीं. सम्यग्ज्ञानमां सुख छे, ने बीजे क््यांय सुख
नथी. ए अपेक्षाए केवळी भगवंतोने एकांत सुखी कह्या छे.