Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९९
अंतरमां रागथी पार आत्माना शुद्ध स्वरूपनुं यथार्थ ज्ञान थयुं ते सम्यग्ज्ञान
छे; त्यां बहारनुं विशेष जाणपणुं हो के न हो, शास्त्रज्ञान ओछुं हो के वधारे, तेनी सथे
संबंध नथी; आत्माने जाणनारुं सम्यग्ज्ञान पोते ज सुखनुं कारण छे. आत्माना
अतीन्द्रिय सुखना अनुभवसहित ज सम्यग्ज्ञान प्रगट्युं छे, ने ते पोते ज परम सुखथी
भरेलुं छे. आत्मामां ज्ञानना परिणमन साथे सुखनुं परिणमन पण भेगुं ज छे.
सम्यग्ज्ञाननी अंदर तो चैतन्यना अनंत भावो भर्या छे. अहा, सम्यग्ज्ञाननी किंमतनी
जगतने खबर नथी. सम्यग्ज्ञान जेवुं सुखकारी त्रणकाळ त्रणलोकमां बीजुं कोई नथी.
पहेलां सम्यग्द्रर्शनना प्रकरणमां कह्युं हतुं के –
‘तीनलोक तिहुंकाल माहिं नहीं दर्शनसो सुखकारी’
अहीं सम्यग्ज्ञान माटे कहे छे के –
‘ज्ञान समान न आन जगतमें सुखको कारन’
जुओ तो खरा, सम्यगद्रर्शन ने सम्यग्ज्ञाननो परम महिमा! तेने परम हितरूप
जाणीने हे भव्य जीवो! तेनी आराधना करो.
आत्माना सम्यग्ज्ञानमां सर्व समाधान ने परम सुख छे, संसारना बधा झेर
उतारी नांखनारुं ते उत्कृष्ट अमृत छे. सुख माटे बीजुं कांई शोध मा! अंतर्मुख थईने
तारा आत्मानुं सम्यग्ज्ञान कर. आनंदनी उत्पत्ति तारा सम्यग्ज्ञानमां छे; कुटुंबमां –
पैसामां – शरीरमां क््यांय आनंद मळे तेम नथी. आत्माना सम्यग्ज्ञान वगर देवलोकना
देवो पण दुःखी छे, त्यां बीजानी शी वात? शुभराग, पुण्य अने तेनुं फळ – ए बधुंय
आत्माना ज्ञानथी जुदुं छे; ते रागमां, पुण्यमां के पुण्यफळमां क््यांय जे सुख माने तेने
साचा ज्ञाननी के साचा सुखनी खबर नथी, ज्ञानना ने सुखना बहाने ते अज्ञानने
तथा दुःखने ज सेवे छे. बापु! सुख अने ज्ञान तो तारो स्वभाव छे, तेने ओळख, तो
ज सम्यग्ज्ञान अने अतीन्द्रिय सुखनो अनुभव थाय. अतीन्द्रिय ज्ञानमां जे सुख छे
तेवुं सुख ईन्द्रपदमां नथी, चक्रवर्तीपदमांय नथी, के जगतमां बीजे क््यांय नथी, एटले के
ज्ञान सिवाय बीजे क््यांय सुख छे ज नहीं. सम्यग्ज्ञानमां सुख छे, ने बीजे क््यांय सुख
नथी. ए अपेक्षाए केवळी भगवंतोने एकांत सुखी कह्या छे.