Atmadharma magazine - Ank 358
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९९ आत्मधर्म : २७ :
अहो, सम्यग्ज्ञान तो परम अमृत छे. ‘अमृत’ एटले मरण वगरनुं एवुं
मोक्षपद ते सम्यग्ज्ञान वडे पमाय छे, माटे सम्यग्ज्ञान ते परम अमृत छे; ते जन्म–
जरा–मरणना रोगने मटाडीने मोक्षरूपी अमरपद देनार छे. बहारनुं भणतर के
दुनियादारीनुं डहापण जेमां काम आवतुं नथी, आत्मामांथी ज जे आवे छे – एवुं आ
सम्यग्ज्ञान परम अमृत छे. आत्मानो स्वभाव अनाकुळ आनंदस्वरूप अमृत छे, तेमां
तन्मय थईने तेने जाणनारुं ज्ञान पण आनंदरूप थयुं छे तेथी ते पण परम अमृत छे,
तेमां तन्मय थईने तेने जाणनारुं ज्ञान पण आनंदरूप थयुं छे तेथी ते पण परम अमृत
छे. अने एवा स्वरूपने देखाडनारी वाणीने पण उपचारथी अमृत कहेवाय छे.
वचनामृत वीतरागनां..... परम शांतरस मूळ आवी वीतरागवाणी द्वारा थतुं आत्मानुं
सम्यग्ज्ञान, ते जीवना भवरोगने मटाडनार अमोध औषध छे. शरीरमां भले
वृद्धावस्था हो के बाळक अवस्था हो, नरकमां हो के स्वर्गमां हो, रोगादि हो के नीरोगता
हो, – पण आवुं सम्यग्ज्ञान सर्वत्र परम शांति देनार छे.
आत्मानुं ज्ञान छे ते आनंद सहित छे; जेमां आनंद नहीं ते ज्ञान नहीं. जे
दुःखनुं कारण थाय तेने ज्ञान कोण कहे? – ए तो अज्ञान छे. ज्ञान तो त्रणकाळ
त्रणलोकमां अपूर्व सुखनुं ज कारण थाय छे, ते परम अमृत छे. आवुं ज्ञान ज जन्म
मरणथी छूटीने मुक्तिसुख पामवानो उपाय छे; ज्ञान सिवाय बीजो उपाय नथी जे
जीवो पूर्वे सिद्ध थया छे, अत्यारे थाय छे ने भविष्यमां थशे ते बधाय जीवो भेदज्ञान
वडे ज सिद्ध थया छे, थाय छे ने थशे एम जाणो –
सिद्धो थया जे जीव सौ जाणजो भेदज्ञानथी,
बंध्या अरे! जे जीव ते सौ भेदज्ञान – अभावथी.
–आम धारीने हे जीव! तुं अत्रूट धाराए भेदज्ञानने भाव; रागादिथी भिन्न
शुद्ध आत्माने जाणीने तेने ज निरंतर भाव. भेदज्ञानी जीव सदाय आत्माना आनंदमां
केलि करे छे. आत्माना आनंदमां केलि करतो करतो ते मुक्तितां जाय छे.
अहो, हुं तो परम आनंद स्वरूप छुं, जगतथी जुदो ने माराथी परिपूर्ण छुं, सिद्ध
भगवान जेवुं मारुं चैतन्यपद छे, – एम जे ज्ञाने आत्मानी किंमत करी ते ज्ञानमां
अपूर्व ज्ञानकळा ऊघडी; तेना वडे ते शिवमार्गने साधे छे ने शरीरमां वास छूटीने ते
सिद्धपदने पामे छे. भेदज्ञान – कळावडे धर्मी जीव एम अनुभवे छे के