जरा–मरणना रोगने मटाडीने मोक्षरूपी अमरपद देनार छे. बहारनुं भणतर के
दुनियादारीनुं डहापण जेमां काम आवतुं नथी, आत्मामांथी ज जे आवे छे – एवुं आ
सम्यग्ज्ञान परम अमृत छे. आत्मानो स्वभाव अनाकुळ आनंदस्वरूप अमृत छे, तेमां
तन्मय थईने तेने जाणनारुं ज्ञान पण आनंदरूप थयुं छे तेथी ते पण परम अमृत छे,
तेमां तन्मय थईने तेने जाणनारुं ज्ञान पण आनंदरूप थयुं छे तेथी ते पण परम अमृत
छे. अने एवा स्वरूपने देखाडनारी वाणीने पण उपचारथी अमृत कहेवाय छे.
वचनामृत वीतरागनां..... परम शांतरस मूळ आवी वीतरागवाणी द्वारा थतुं आत्मानुं
सम्यग्ज्ञान, ते जीवना भवरोगने मटाडनार अमोध औषध छे. शरीरमां भले
वृद्धावस्था हो के बाळक अवस्था हो, नरकमां हो के स्वर्गमां हो, रोगादि हो के नीरोगता
हो, – पण आवुं सम्यग्ज्ञान सर्वत्र परम शांति देनार छे.
त्रणलोकमां अपूर्व सुखनुं ज कारण थाय छे, ते परम अमृत छे. आवुं ज्ञान ज जन्म
मरणथी छूटीने मुक्तिसुख पामवानो उपाय छे; ज्ञान सिवाय बीजो उपाय नथी जे
जीवो पूर्वे सिद्ध थया छे, अत्यारे थाय छे ने भविष्यमां थशे ते बधाय जीवो भेदज्ञान
वडे ज सिद्ध थया छे, थाय छे ने थशे एम जाणो –
बंध्या अरे! जे जीव ते सौ भेदज्ञान – अभावथी.
केलि करे छे. आत्माना आनंदमां केलि करतो करतो ते मुक्तितां जाय छे.
अपूर्व ज्ञानकळा ऊघडी; तेना वडे ते शिवमार्गने साधे छे ने शरीरमां वास छूटीने ते
सिद्धपदने पामे छे. भेदज्ञान – कळावडे धर्मी जीव एम अनुभवे छे के