Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : ३ :
गुरु केवा छे? –के जेओ चैतन्यतत्त्वनो महिमा बतावीने तेमां द्रष्टि करवानुं कहे
छे. श्रीगुरुनी समीपताथी आवा आत्मतत्त्वनी द्रष्टि करीने, ज्ञानना महिमावडे समस्त
मोहनो महिमा नष्ट करी नांख्यो छे. चैतन्यनो महिमा प्रगट्यो त्यां मोहनो महिमा
तूटयो. हजी सम्यग्दर्शन थतां वेंत समस्त मोह नष्ट न थई जाय, पण ते मोहनो
महिमा तो नष्ट थई गयो छे, तेनुं अनंतु जोर तूटी गयुं छे.
समीपमां जा... त्यां चैतन्यनो परम महिमा ज्ञानमां आवतां ज परभावनो महिमा
छूटी जशे. आवा तत्त्वने अंतरमां अनुभववुं ते श्रीगुरुना सान्निध्यमां करवानुं
छे, ते ज श्रीगुरुनी आज्ञा छे. हजी राग–द्वेष होवा छतां, धर्मीने सम्यग्दर्शनमां
चैतन्यपरमेश्वरनी प्राप्ति थतां तेना महिमामां ज्ञान लीन थयुं, ते ज्ञानधारा
समस्त रागादि परभावोथी छूटी पडी गई, तेमां आनंदकंद आत्मानो ज महिमा
रह्यो. –आनुं नाम निर्वाण मार्गनी भक्ति छे.
अहो, श्रीगुरुए मने एम कह्युं के तुं तारा आनंदमय परमात्मतत्त्व पासे जा. ए
रीते श्रीगुरुना उपदेशथी परमात्मतत्त्व पासे जतां (अंतर्मुख परिणति करतां)
आनंदकारी धर्मदशा मने प्रगटी, तेमां हवे रागादिनो महिमा रही शके नहीं. जेने परनो
के शुभरागनो पण महिमा लागे तेने पोताना वीतरागी आनंदमय तत्त्वनो महिमा
आवतो नथी ने सुखकारीधर्म तेने प्रगटतो नथी, ते तो रागना दुःखने ज अनुभवे छे.
श्रीगुरुए तो एम संभळाव्युं के ज्ञानमां चैतन्यभावनो महिमा लावीने स्वसन्मुख था.
गुरुए एम न कह्युं के तुं अमारी वाणीनुं ज लक्ष करीने अटकी रहेजे, के अमारा उपर
शुभराग करीने अटकी रहेजे–एम न कह्युं, पण श्रीगुरुए तो एम कह्युं के तारो
परमात्मा तारा अंतरमां तारी समीप ज बिराजे छे, तेने अनुभवमां ले. वाणीनुं ने
रागनुं लक्ष छोडीने, परनो महिमा छोडीने, आत्माना परमस्वभावनो महिमा लक्षमां
ले–ए ज बार अंगनो सार छे. ज्ञान आनंदमय आत्मानी अनुभूति ज सर्व सिद्धांतनो
सार छे, ते ज गुरुनुं परमार्थ सान्निध्य छे, ते सिद्धनी निश्चयभक्ति छे, ने ते ज
निर्वाणनो आनंदमय मार्ग छे.
शुद्धात्मानी अनुभूति ज द्वादशांगनो सार छे; ते ज सर्वे गुरुओना उपदेशनो
सार छे. जेणे स्वानुभूति करी तेणे सर्व सिद्धांतनो सार जाणी लीधो; पछी त्यां एवी
कोई अटक नथी के बार अंग भणे तो ज आत्मानी अनुभूति थाय. तेने
शास्त्रभणतरनुं बंधन नथी के आटला शास्त्रो वांचवा ज पडशे. जेणे सर्व शास्त्रना