: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : ७ :
अरे, ज्ञानीनी ज्ञानपर्यायमां पण केटली ताकात छे तेनी जगतने खबर
नथी. पर्यायनी अगाध ताकातनो निर्णय करवा जाय तो त्यां पण ज्ञान रागथी
छूटुं पडीने अंदर स्वभावमां घूसी जाय. पर्याये–पर्याये ज्ञानीनुं ज्ञान रागथी छूटुं ज
कार्य करे छे.
अहा, त्रणकाळने वर्तमानमां जाणी ल्ये–आवी ज्ञानपर्यायनी ताकात जेना
विश्वासमां आवी गई, तेने बहारनो क्षयोपशम वधारवानी आकुळता रहेती नथी,
तेनी ज्ञानपर्याय रागथी छूटी पडीने, अखंड ज्ञानस्वभावना आश्रये काम करे छे, ने ए
ज रीते भविष्यमां पण ते–ते काळनी पर्यायमां स्वभावना आश्रये त्रणकाळने
जाणवानी ताकात खीलशे, तेनो भरोसो अत्यारे स्वसन्मुख थयेली वर्तमान पर्यायमां
आवी गयो छे.
त्रिकाळी द्रव्य–गुण तथा त्रणकाळनी पर्यायो–ते बधा ज्ञेयोने स्वीकार्या वगर, ते
ज्ञेयोने जाणवाना सामर्थ्यवाळी ज्ञानपर्यायनो पण स्वीकार थई शके नहि एटले
ज्ञाननी एक शुद्ध पर्यायनो पण जो खरो स्वीकार करवा जाय तो ते पर्यायना ज्ञेयरूप
समस्त द्रव्य–गुण–पर्यायनो पण स्वीकार थई जाय छे. द्रव्यना अस्वीकारपूर्वक
अनित्यपर्यायनुं पण साचुं ज्ञान थई शकतुं नथी.
अरे भाई, तारी एक पर्यायनी पूरी ताकातनो स्वीकार कर तो तेना अपार
सामर्थ्यमां त्रणकाळनी समस्त पर्यायो अने द्रव्य–गुणो ज्ञेयपणे समायेला छे, –तेने
स्वीकार करनारुं ज्ञान रागथी छूटुं पडीने काम करे छे पछी परसन्मुखी ज्ञानना
जाणपणाने वधारवानो महिमा तेने रहेतो नथी. एनुं ज्ञान तो स्वसन्मुख एकाग्र
थईने पोतानुं काम करे छे, ने आनंदनुं वेदन करतुं–करतुं मोक्षने साधे छे.
एक वर्तमान पर्याय त्रणकाळने जाणे तेथी कांई तेने उपाधि लागी जती नथी, के
तेमां अशुद्धता थई जती नथी. तेमज आत्मा त्रिकाळ टके तेथी कांई तेने. काळनी
उपाधि के अशुद्धता थई जती नथी, नित्यपणुं तो सहज स्वभाव छे. जेम अनित्यपणुं
छे तेम नित्यपणुं पण छे–ए बंने स्वभाववाळो आत्मा छे.
वर्तमानमां जे आत्मा छे ते भूतकाळमां हतो ने भविष्यकाळमां रहेशे–एम
वस्तुस्वरूप छे, त्रणेकाळने स्पर्शनारी वस्तु छे, तेने कांई त्रिकाळ टकवामां बोजो के
अशुद्धता नथी. आवा द्रव्यस्वभावना स्वीकारपूर्वक तेमां एकाग्र थईने
अतीन्द्रियभावरूपे परिणमेली पर्याय रागथी जुदुं कार्य करे छे; अने ते ज स्वभावना
आश्रये केवळज्ञान थाय त्यारे ते पर्याय एकेक समयने जुदो पाडीने पकडी शके. एक
समयने पकडवानुं