Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
काम छद्मस्थनो स्थूळ उपयोग करी शके नहीं, तेनो उपयोग असंख्यसमये कार्य करे
एवो स्थूळ छे. बोद्ध जेवा भले आत्माने सर्वथा क्षणिक एक समयनो ज माने, परंतु
तेनुं ज्ञान कांई एकेक समयनी पर्यायने पकडी शकतुं नथी, ते पण असंख्यसमयनी
स्थूळ पर्यायने ज जाणी शके छे.
द्रव्य शुं, पर्याय शुं, पर्यायनी ताकात केटली? –ते एक्केय वातनो निर्णय
अज्ञानीने होतो नथी. ते गमे ते वस्तुने गमे ते प्रकारे अंधाधुंध आंधळानी जेम मानी
ल्ये छे. अरे, द्रव्य–गुण–पर्याय एमांथी एकपण वस्तुनो साचो निर्णय करवा जाय तो ते
ज्ञानमां समस्त द्रव्य–गुण–पर्यायनो, त्रणकाळ–त्रणलोकनो निर्णय समाई जाय, ने ते
ज्ञान रागथी जुदुं पडीने अंदरना स्वभाव तरफ वळी जाय; तेमां तो अनंतगुणोना
सुखनो रस भर्यो छे. अहा, धर्मीनी एक ज्ञानपर्यायमां केवी अचिंत्य ताकात भरी छे ने
तेमां केवो अद्भुत आत्मवैभव प्रगट्यो छे, तेनी जगतने. खबर नथी. जगतने तो
खबर पडे के न पडे पण ते ज्ञानी पोते पोतामां तो पोताना चमत्कारीक वैभवने
अनुभवी ज रह्या छे.
हे भाई! तारी वर्तमानपर्यायमां आनंदतो छे नहि; ने जो तुं आ पर्याय जेटलो
ज क्षणिक आत्मा मानीश तो आनंद लावीश क्यांथी? आत्माने सर्वथा क्षणिक मानतां
तने कदी आनंद थशे नहि. नित्यस्वभाव जे आनंदथी सदा भरेलो छे, तेनी सन्मुख
थईने परिणमतां अनित्य एवी पर्यायमां पण तने आनंदरूपी अमृतना धोध वहेशे.
नित्य–अनित्यरूप संपूर्ण वस्तुना स्वीकार वगर आनंदनो अनुभव थई शके नहि.
नित्यअंश अने अनित्यअंश–बंनेरूप अखंड वस्तुस्वभाव छे, ते अनेकान्तमय
वस्तुस्वरूपने प्रकाशनार जैनशासन जयवंत छे.
८ ९९ ९९ ९९७
तमे कोई मुनिने मानो छो? ... हा.
अहो, मुनि ए तो साक्षात् मोक्षमार्ग, एना महिमानी शी वात?
एवा आठ करोड नव्वाणुं लाख नव्वाणुं हजार नवसो सत्ताणुं (८, ९९, ९९,
९९७ तीनघाटी नवक्रोड) मुनिभगवंतो आ मनुष्यलोकमां वर्ते छे, ते सर्व
मुनिभगवंतोने परमभक्तिथी मानीए छीए, नमस्कार करीए छे... ने ते
पदनी भावना करीए छीए. (आ उपरांत कुंदकुंदाचार्य देव आदि अनेक
मुनिवरो पूर्वे थया, ने भविष्यमां थशे–ते सौने पण याद करीने नमस्कार
करीए छीए.)