करीने हे जीव! तुं तारा परम आनंदमय परमात्मतत्त्वने भज.
‘वाह रे वाह! आत्मा! तारा मारगडा तारा अंतरमां समाय
छे. वाणी ज्यां पहोंची शकती नथी, विकल्प जेमां प्रवेशी
शकतो नथी, एवो निरालंबी स्वाश्रितमार्ग छे. नमस्कार हो
आवा स्वाश्रित सुंदर मार्गने अने ते मार्ग प्रसिद्ध करनारा
वीतराग संतोने.
शुद्धआत्मामां अंतर्मुखताथी ज ते प्रगटे छे. तेमां क्यांय बीजानुं शरण नथी, बीजानो
आश्रय नथी. निज परम शुद्धात्मतत्त्वमां अंतर्मुखतारूप स्ववशपणुं ते धर्मात्मानुं परम
आवश्यक कार्य छे, ते ज निर्वाणनो मार्ग छे. अहो, अशरीरी थवानो मार्ग वीतरागी
संतोए जगतमां प्रसिद्ध कर्यो छे.
माटे तमे आवा शुद्ध रत्नत्रयमार्गने आराधो, अने बीजा अन्यवश पराश्रित भावोने
छोडो. –अशरीरी थवानो आ अफर उपाय छे.