Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : ९ :
मोक्षने माटे मुमुक्षुए अवश्य करवा योग्य स्वाधीन कार्य
जिनेश्वरभगवंतोए स्वाधीन–आत्मवश सुंदर
मोक्षमार्ग देखाड्यो छे. महाभाग्ये आवा सुंदर मार्गने प्राप्त
करीने हे जीव! तुं तारा परम आनंदमय परमात्मतत्त्वने भज.
‘वाह रे वाह! आत्मा! तारा मारगडा तारा अंतरमां समाय
छे. वाणी ज्यां पहोंची शकती नथी, विकल्प जेमां प्रवेशी
शकतो नथी, एवो निरालंबी स्वाश्रितमार्ग छे. नमस्कार हो
आवा स्वाश्रित सुंदर मार्गने अने ते मार्ग प्रसिद्ध करनारा
वीतराग संतोने.
धर्मात्माजीवो परम जिनमार्गना आचरणमां कुशळ छे. जिनमार्ग केवो छे? –के
आत्मवश छे. सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र आत्मवश छे–स्ववश छे एटले के
शुद्धआत्मामां अंतर्मुखताथी ज ते प्रगटे छे. तेमां क्यांय बीजानुं शरण नथी, बीजानो
आश्रय नथी. निज परम शुद्धात्मतत्त्वमां अंतर्मुखतारूप स्ववशपणुं ते धर्मात्मानुं परम
आवश्यक कार्य छे, ते ज निर्वाणनो मार्ग छे. अहो, अशरीरी थवानो मार्ग वीतरागी
संतोए जगतमां प्रसिद्ध कर्यो छे.
सर्वज्ञभगवान कहे छे के अहो भव्य जीवो! आत्माने आधीन एवा मोक्षमार्ग
रूप शुद्ध सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते नियमथी करवा योग्य सारभूत कर्तव्य छे. मोक्षने
माटे तमे आवा शुद्ध रत्नत्रयमार्गने आराधो, अने बीजा अन्यवश पराश्रित भावोने
छोडो. –अशरीरी थवानो आ अफर उपाय छे.
अरे, पूर्ण स्वाधीनतारूप मोक्ष, एनो उपाय ते कांई परना आश्रये होय?
परना आश्रये तो पराधीनता थाय; स्वाधीनता तो स्वद्रव्यना ज आश्रये थाय. माटे