Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
कहेवाना शब्दो थोडा, पण अंदर एना गुणना महिमानो कोई पार नथी; अनंतगुणना
पकवान्न मधुर चैतन्यरस तारामां भर्या छे, तेनो स्वाद ले. –ते ज अशरीरी थवानी
रीत छे. आ उपायथी जरूर सिद्ध थवाय छे.
अशुभराग तो अन्यवश छे ने शुभराग पण अन्य वश छे. अशुभमां वर्ते छे
तेने तो आवश्यक नथी, परंतु शुभराग पण मोक्ष माटेनुं आवश्यक कार्य नथी, ते
शुभराग तो मोक्षकार्यथी विमुख छे; मोक्ष माटेनुं आवश्यक कार्य तो शुद्धभाव ज छे, ते
ज आत्मवश भाव छे. अरे, मोक्षनुं काम ते कांई रागवाळुं होय? बीजाने वश वर्तनारो
तो नोकर कहेवाय; नोकर ते कांई शोभे? जिनमार्ग तो स्वाधीन स्ववश भावथी ज
शोभे छे, अन्यवशपणुं तेमां शोभतुं नथी. स्ववश योगीओ ज वीतरागरत्नत्रयवडे
जिनमार्गमां शोभे छे. चोथागुणस्थाने जे सम्यक्त्वादि शुद्धभाव छे तेटलुं तो राग
वगरनुं स्ववशपणुं छे, ते जिनमार्गमां शोभे छे. रागवडे जिनमार्गमां शोभा नथी,
वीतरागभाववडे ज शोभा छे, ते ज जिनमार्ग छे, ते ज मोक्षनो उपाय छे ने ते ज
धर्मात्मानी आवश्यक क्रिया छे.
जिनमार्गमां रत्नत्रयरूप वीतरागकार्य करनारा मुनिवरो सुकृती छे. सम्यग्द्रष्टिने
पण सुकृती कहेवाय छे, सुकृत एटले उत्तम कृत्य; सम्यग्दर्शनरूपी उत्तम कार्य जेणे कर्युं छे
ते धर्मात्मा सुकृती छे. अत्यारे आ कळिकाळमां पण कोईक विरला सुकृती जीवो
सम्यग्दर्शननादि सहित जोवामां आवे छे. अने सम्यग्दर्शन ते सद्धर्मनी रक्षा करनार
मणि छे. ज्यां सम्यग्दर्शन छे त्यां गमे तेवी आपत्ति वच्चे पण जीवना धर्मनी रक्षा
थाय छे. संसारनी सर्व आपत्तिथी रक्षा करनार सम्यग्दर्शन रक्षामणि समान छे. अने
आवा सम्यग्दर्शन उपरांत जेने मुनिदशा थई तेनी तो शी वात! आवा मुनिभगवंतो
धर्मना रक्षक छे, तेओ रागना रक्षक नथी पण वीतरागभावरूप सत्धर्मना रक्षक छे–
एटले के सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना रक्षक छे. सम्यग्द्रष्टि पण सत्धर्मना रक्षक ने
पोषक छे, ते रागना रक्षक के पोषक नथी.
अहो, मुनिनी शी वात! ए तो स्व–वश छे, ने जिनेश्वरभगवान करतां जराक
ज न्यून छे; ए पोते धर्मना रक्षक चैतन्यमणि छे. जगतमां एवा मणि थाय छे के जेना
हाथमां ते मणि होय तेने सर्पादिनुं झेर चडे नहि ने बहारनी कोई आपत्ति आवे नहि;
तेम आत्मामां स्ववशपणुं ते एवो मणि छे के जेनी पासे ते चैतन्यमणि छे तेने
मिथ्यात्वादि झेर चडतुं नथी, ने तेना सम्यग्दर्शनादिनी रक्षा थाय छे, एटले संसारनी
कोई आपत्ति तेने आवती नथी. मुनि पोते वीतरागमूर्ति छे अने