पोषक होई शके नहि. वीतरागस्वरूप आत्मा बतावीने तेनी श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रतारूप
धर्मनी रक्षा करनारा धर्मात्मा छे. एवा धर्मत्माओ आत्माने आधीनपणे आवश्यक
क्रिया करनारा छे. ते आवश्यक अशरीरी एवी सिद्धदशानुं कारण छे. अशरीरी थवानो
आवो सुंदर मार्ग वीतरागी संतोए जिनमार्गमां प्रसिद्ध कर्यो छे.
अंतर्मुख थईने प्रगटेली सम्यक्त्वादि अपूर्व आनंदमय वीतरागीदशा, ते ज अमने
प्राणप्यारी छे, ते ज अमारी वहालामां वहाली वस्तु छे. अहा, अमारा आवा आनंद
पासे लोकप्रशंसानी शी किंमत छे? अरे, सो ईन्द्रोने त्रण जगतना जीवो प्रशंसा करे
तोपण जे सुखनुं माप न थई शके एवुं वचनातीत अतीन्द्रिय आत्मिकसुख अमारा
आत्मामां वेदाय छे, अमारा आ आत्मरस पासे आखा जगतना रस फिक्का छे, एमां
क्यांय किंचित् सुख अमने भासतुं नथी.
परमागमोमां ते मार्ग प्रसिद्ध कर्यो छे. आवा स्वाधीन मार्गनो निर्णय करतां मोक्षना
दरवाजा खूली जाय छे.
सुंदर शुद्धरत्नत्रयकार्य, ते ज मोक्षार्थी जीवनुं मोक्ष माटेनुं आवश्यक कार्य छे; मोक्ष माटे
ते चोक्कस करवा जेवुं कार्य छे. ए ज मोक्ष पामवानी युक्ति छे; ने ते ज जिनेश्वरोनो
मार्ग छे. आवा सुंदर मार्गने संतो साधे छे ने जगतने देखाडे छे.
समाय छे. ’ –वाणी ज्यां पहोंची शकती नथी, विकल्प जेमां प्रवेशी शकतो नथी, एवो
निरालंबी स्वाश्रितमार्ग छे.