Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
एककोर श्रावण मासना उत्सवो चालता हता,
आकाशमांथी वरसती मेघवर्षा पृथ्वीने तृप्त करती हती...
बीजी कोर प्रवचनमां वीतरागी परमात्मभक्ति अने ज्ञानना
अगाध सामर्थ्यना वर्णन वडे चैतन्यगगनमांथी वरसती
शांतरसनी अमृतधारा भव्यजीवोना अंतरने तृप्त करती हती.
दूरवर्ती आत्मजिज्ञासुओ पण ए अपूर्व आत्मरसनुं पान
करवा हंमेशां आतुर होय छे. तेओ पण आ लेख द्वारा ते
मधुर शांतरसनुं थोडुंघणुं पान करीने तृप्त थशे. अहीं श्रावण
मासनी ते महान मेघवर्षामांथी झीलेलां १०१ बिंदु आप्यां छे,
तेनुं रसपान आपने जरूर आनंदित करशे.
–ब्र. ह. जैन
(श्रावण मास दरमियान नियमसार–भक्तिअधिकार तथा
समयसार–सर्व विशुद्धअधिकार उपरनां प्रवचनोमांथी दोहन)

पोताना परमात्मतत्त्वनी सन्मुख थईने जे सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान–आचरणरूप
परिणामनुं भजन ते भक्ति छे; श्रावक अने श्रमण शुद्धरत्नत्रयवडे आवी
भक्ति करे छे, ते ज निर्वाण माटेनी भक्ति छे.
(१)
धर्मी–श्रावकने जेटला सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप शुद्धपरिणाम छे तेटली
निर्वाणनी परम भक्ति छे, तेटलो मोक्षमार्ग छे. (र)