Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
आत्माना सहज गुणो अने तेनी निर्मळ परिणति ते बीजा कोईनी सहाय
वगरना असहाय छे. आत्माना आनंदना अनुभवमां बीजा कोईनी सहाय
नथी, शुभरागनी सहाय नथी. आवा असहाय (स्वाधीन) गुणवाळा
आत्मानी प्राप्ति वीतरागरत्नत्रयमां आत्माने स्थापीने थाय छे.
(३२)
वाह! आत्माने पंचपरमेष्ठीनी साथे बेसाडीने, आत्माना आनंदना घूंटडा
पीता–पीता मोक्षनी केवी भक्ति करी छे? आ भक्तिमां राग नथी; आ तो
वीतरागी आनंदवाळी भक्ति छे.
(३३)
जेना भणकारे भगवान थवानी खातरी थई जाय–एवो महान आत्मा छे.
अहा, जे आत्माना स्वभावनो महिमा सांभळतां पण आवो प्रमोद अने
शांतिना भणकार आवे तेना साक्षात् अनुभवना आनंदनी तो शी वात? आम
चैतन्यस्वरूपनो परम महिमा भासे तो तेमां अभिमुख थईने आनंदरसना
घूंटडा पीवे. –आनुं नाम परमात्मानी परमभक्ति छे. आवी भक्ति वडे
पोताना सहज चिदानंदतत्त्वनी प्राप्ति थाय छे.
(३४)
अहा, जुओ तो खरा, आचार्यदेवे परमात्मतत्त्वनी भावनाने केवी मलावी छे!
निजभावना–अर्थे आ परमागम रच्युं छे, कांई दुनियाने राजी करवा नथी रच्युं.
दुनिया भले सांभळी ल्ये के आवुं अद्भुत परमात्मतत्त्व छे, ते ज भावना
करवा जेवुं छे.
(३५)
भाई, तारे भक्ति करवी छे ने! तो आत्माने आत्मामां ज राखीने एवी भक्ति
कर के जेनाथी मुक्तिनी प्राप्ति थाय. आत्माने रागमां राखीने भक्ति करवाथी
कांई मुक्ति थती नथी. भक्ति तो एवी ज शोभे के जेनाथी आनंदमय
मुक्ति मळे.
(३६)
चैतन्यचमत्कारमय निज आत्मानी भक्तिथी, एटले के तेमां पर्यायने स्थिर
करवाथी, अजोड एवुं निजघर प्राप्त थाय छे के जे आनंदमय संपदाथी शोभीतुं
छे, ने जेमां कोई विपदा नथी. उपरना शुभरागमां कांई आनंद नथी, ने तेनाथी
मोक्षघरमां जवातुं नथी. मोक्षघरमां जवुं होय तो आत्माने परभावथी छूटो
करीने सम्यक्त्वादि निजभावमां जोड.
(३७)
उपयोगनुं आत्मस्वरूपमां जोडाण ते योगभक्ति छे. आ निर्विकल्प योगभक्तिमां