
पोताना परमात्मतत्त्वने जोडे छे, अद्वैतपणे तेनो अनुभव करे छे. –आ सिवाय
बीजी रीते योगभक्ति होती नथी. आवा अद्वैत आनंदमय शुद्धोपयोगरूप जे
भक्तियोग ते ज योगीओने मोक्ष देनार छे.
आत्मामां केम जोडशे? अरे, मारा आत्मा सिवाय बहारमां मारा माटे कांई छे
ज क्यां? आनंदनो भंडार तो अंदर आत्मामां भर्यो छे, –एम अचिंत्य महिमा
वडे आत्मामां उपयोगनी एकाग्रता करवी ते योगभक्ति छे.
बहारमां जे ज्ञान भमे तेमां आत्मानुं शुं हित छे? ए तो बधा रागना प्रपंच
छे. चैतन्यने भूलीने बहारना जाणपणामां जे संतोषाई गयो तेने तो परमां
सुखबुद्धि छे, ते पोताना उपयोगने आत्मस्वरूपमां जोडतो नथी तेथी तेने
‘शुद्धमां उपयोगरूप भक्ति’ क्यांथी होय?
वरसाद वरसाव्या छे ने मुमुक्षुना आत्मामां आनंदना सुकाळ करी दीधा छे.
आत्मामां आनंदनां वाजा वागे–एवी आ भक्ति छे. धर्मीजीव आत्मामां
आनंदनां वाजां वगाडतो–वगाडतो मोक्षमां चाल्यो जाय छे.
आनंदनी देनार छे.
कोनी साथे? के परम समरसभावरूप आत्मा, जेमां कोई विकल्प नथी, तेमां
आत्मउपयोगने जोडवो ते अपूर्व योगभक्ति छे.