Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : २१ :
उपशांतरस झरे छे. आसन्नभव्यजीव आवी योगभक्तिवडे परम–आनंद साथे
पोताना परमात्मतत्त्वने जोडे छे, अद्वैतपणे तेनो अनुभव करे छे. –आ सिवाय
बीजी रीते योगभक्ति होती नथी. आवा अद्वैत आनंदमय शुद्धोपयोगरूप जे
भक्तियोग ते ज योगीओने मोक्ष देनार छे.
(३८)
अहो, आत्मानो अद्भुत महिमा! एना सिवाय जगतमां बीजे क्यांय कोई
वस्तुनो महिमा आवे तो ते पोताना उपयोगने तेमांथी पाछो वाळीने
आत्मामां केम जोडशे? अरे, मारा आत्मा सिवाय बहारमां मारा माटे कांई छे
ज क्यां? आनंदनो भंडार तो अंदर आत्मामां भर्यो छे, –एम अचिंत्य महिमा
वडे आत्मामां उपयोगनी एकाग्रता करवी ते योगभक्ति छे.
(३९)
अरे, आत्माना आनंदस्वरूपमां जे ज्ञान न जोडाय, अने आत्माने भूलीने
बहारमां जे ज्ञान भमे तेमां आत्मानुं शुं हित छे? ए तो बधा रागना प्रपंच
छे. चैतन्यने भूलीने बहारना जाणपणामां जे संतोषाई गयो तेने तो परमां
सुखबुद्धि छे, ते पोताना उपयोगने आत्मस्वरूपमां जोडतो नथी तेथी तेने
‘शुद्धमां उपयोगरूप भक्ति’ क्यांथी होय?
(४०)
अहो! शुद्ध उपयोगरूप योगभक्ति महा आनंदमय छे; आवी भक्तिमां
आत्माने डोलावीने आचार्य भगवाने आ पंचमकाळमां वीतरागी अमृतना
वरसाद वरसाव्या छे ने मुमुक्षुना आत्मामां आनंदना सुकाळ करी दीधा छे.
आत्मामां आनंदनां वाजा वागे–एवी आ भक्ति छे. धर्मीजीव आत्मामां
आनंदनां वाजां वगाडतो–वगाडतो मोक्षमां चाल्यो जाय छे.
(४१)
अहो, आ आत्मयोग ते साचो योग छे, तेमां पोताना आत्मबंधु साथे
चैतन्यपरिणति एकाकार थईने तेने भजे छे. आवी योगभक्ति ते मुक्तिना
आनंदनी देनार छे.
(४२)
मुक्तिना कारणरूप अनुपम योगभक्तिनुं आ वर्णन छे. योग एटले जोडाण;
कोनी साथे? के परम समरसभावरूप आत्मा, जेमां कोई विकल्प नथी, तेमां
आत्मउपयोगने जोडवो ते अपूर्व योगभक्ति छे.
(४३)
आत्मामां एकाग्र थईने शांतभावरूपे आत्मा परिणम्यो, ते शांति साथे जोडा–