भाव ते ज मोक्षनी अपूर्व भक्ति छे.
छे. पोतानो आत्मा परम समतारसस्वरूप छे, तेमां चैतन्यना आनंदनी मोज
छे. –तेमां अंतर्मुख थतां आनंदमय मोक्षमार्ग प्रगटे छे. तेमां बहारनुं कोई
अवलंबन नथी.
जुदी जातनी कोई अपूर्व आ वात छे, चैतन्यना समभावरूपी अमृतनी आ
वात छे; तेमां अशुभ के शुभ सर्व विकल्पनो अभाव छे, ने निर्विकल्प
आनंदमय समरस झरे छे. –आवो वीतरागनो मार्ग छे, ने आवी वीतराग
मार्गनी (रत्नत्रयनी) भक्ति छे.
ते ज रागना अभावरूप भक्ति छे. आवी भक्ति गृहस्थ–श्रावकने पण
होय छे.
आवो हतो–एम चैतन्यजातिनुं त्रणेकाळनुं ज्ञान धर्मीने वर्ते छे. पूर्वनो भव
क््यां हतो– ते क्षेत्रादि भले याद आवे के न आवे पण वर्तमान
स्वसन्मुखपर्यायना बळे चैतन्यजातिनुं पूर्वनुं ने भविष्यनुं पण ज्ञान करवानी
ताकात साधकने छे, –आ पारमार्थिक जातिस्मरणज्ञान छे, ने ते बधा
सम्यक्द्रष्टिने होय छे. आत्मानी त्रिकाळिकताना ज्ञान वगर सम्यग्दर्शन होई
शकतुं नथी.
थशे–ते त्रणेकाळनी चैतन्यजातिने धर्मी जीव जाणी ल्ये छे, ते परमार्थरूप
जातिस्मरण छे. आवा स्वजातिना स्मरण वगर सम्यग्दर्शन थाय नहीं.
भवसंबंधी जातिस्मरण ते जुदी जात छे, ने आ चैतन्यनी स्वजातनुं स्मरण ते
अपूर्व सम्यक्त्वादिरूप महा शांतिथी भरेलुं छे.
पण ज्ञान तेमां आवी गयुं; त्रणेकाळने एक काळमां ते कळी ल्ये छे. (५०)