
अंतरमां ऊंडा चैतन्यभावने स्पर्शीने तेनी हा पाड तो तारो बेडो पार
थई जाय.
बापु! आवा आत्मामां स्वसन्मुख पर्याय ते तारो मार्ग छे; बहारमां
बीजे क्यांय तारो मार्ग नथी. माटे तारा आत्माने तारी परमसमरसी
पर्यायमां जोड.
अभेद थया; आ रीते हे जीव! तारा आत्माने आत्मामां ज जोडीने तुं
स्वद्रव्यनी रक्षा कर. आनुं नाम भगवाननी भक्ति छे, आनुं नाम गुरुनी
आज्ञा छे, आ ज परमागमनुं रहस्य छे. जेणे आम कर्युं तेणे सत्यनी रक्षा करी,
तेणे पोताना आत्माने मोक्षमार्गमां जोडयो.
बहिर्मुख भाव वडे मोक्षनी परमार्थ भक्ति थती नथी. संपूर्ण अंतर्मुख पर्याय–
तेमां एक विकल्प पण पालवतो नथी; आवी पर्याय वडे अत्यंत नीकट काळमां
ज मोक्षदशा खीली जाय छे. सर्वे तीर्थंकरो पर्यायने अंतर्मुख करीने आवी
भक्तिवडे मुक्ति पाम्या. तुं पण तारी पर्यायने समरसभावमां जोडीने आवी
भक्ति कर.
तारा चैतन्यना अपार करियावर सहित संतो अने मोक्षमां वोळाए छे. तुं तारी
चैतन्यपरिणतिना वैभवमां आत्माने जोडीने मोक्षना मार्गे आव. (५९)
हे मुमुक्षु! तारा चैतन्यना महिमारूपी आ जळबिंदु–तेने प्रेमथी आत्मामां चूसी
ले. ते चूसतां–चूसतां तारो चैतन्यघडो आनंदना जळथी भराई जशे.. चैतन्यनो
महिमा घूंटतां घूंटतां तेनो अनुभव थशे.
पर्यायमां (शुभाशुभराग वगरनी समरसपर्यायमां) आत्माने जोडे छे ने
सिद्धपुरीना मंगलमार्गे चाल्या जाय छे. अमे अमारा आत्माने आवी समरसपर्यायमां