Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : भाद्रपद र४९९ :
आनंदमय निर्मळपर्यायमां जोडीने तें हा न पाडी जो एकवार रागथी जुदो पडी
अंतरमां ऊंडा चैतन्यभावने स्पर्शीने तेनी हा पाड तो तारो बेडो पार
थई जाय.
(५५)
अहा, चैतन्यनो अपार अनंत महिमा, तेनो स्वीकार तो पर्यायमां थाय छे ने!
बापु! आवा आत्मामां स्वसन्मुख पर्याय ते तारो मार्ग छे; बहारमां
बीजे क्यांय तारो मार्ग नथी. माटे तारा आत्माने तारी परमसमरसी
पर्यायमां जोड.
(५६)
तारा शुद्धद्रव्यमां परिणतिने जोड, ने शुद्ध परिणतिमां द्रव्यने जोड, –एटले बंने
अभेद थया; आ रीते हे जीव! तारा आत्माने आत्मामां ज जोडीने तुं
स्वद्रव्यनी रक्षा कर. आनुं नाम भगवाननी भक्ति छे, आनुं नाम गुरुनी
आज्ञा छे, आ ज परमागमनुं रहस्य छे. जेणे आम कर्युं तेणे सत्यनी रक्षा करी,
तेणे पोताना आत्माने मोक्षमार्गमां जोडयो.
(५७)
चिदानंदस्वभावमां संपूर्ण अंतर्मुख थईने परमार्थ भक्ति थाय छे; कोईपण
बहिर्मुख भाव वडे मोक्षनी परमार्थ भक्ति थती नथी. संपूर्ण अंतर्मुख पर्याय–
तेमां एक विकल्प पण पालवतो नथी; आवी पर्याय वडे अत्यंत नीकट काळमां
ज मोक्षदशा खीली जाय छे. सर्वे तीर्थंकरो पर्यायने अंतर्मुख करीने आवी
भक्तिवडे मुक्ति पाम्या. तुं पण तारी पर्यायने समरसभावमां जोडीने आवी
भक्ति कर.
(५८)
भगवान! तने मोक्षना पंथे लई जवा माटेनो आ आत्मवैभव अपाय छे.
तारा चैतन्यना अपार करियावर सहित संतो अने मोक्षमां वोळाए छे. तुं तारी
चैतन्यपरिणतिना वैभवमां आत्माने जोडीने मोक्षना मार्गे आव. (५९)
जेम नवा कोरा माटीना घडा उपर पाणीनुं टीपुं पडतां वेंत ते चूसी ल्ये छे, तेम
हे मुमुक्षु! तारा चैतन्यना महिमारूपी आ जळबिंदु–तेने प्रेमथी आत्मामां चूसी
ले. ते चूसतां–चूसतां तारो चैतन्यघडो आनंदना जळथी भराई जशे.. चैतन्यनो
महिमा घूंटतां घूंटतां तेनो अनुभव थशे.
(६०)
वाह! सिद्धपुरीना रस्ता दिगंबर संतोए खूल्ला कर्यां छे. धर्मात्मा पोतानी
पर्यायमां (शुभाशुभराग वगरनी समरसपर्यायमां) आत्माने जोडे छे ने
सिद्धपुरीना मंगलमार्गे चाल्या जाय छे. अमे अमारा आत्माने आवी समरसपर्यायमां