Atmadharma magazine - Ank 359
(Year 30 - Vir Nirvana Samvat 2499, A.D. 1973)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद र४९९ : आत्मधर्म : २५ :
जोड्यो छे, ने हे भव्य जीवो! तमे पण तमारा आत्माने आवी समरसपर्यायमां
परिणमावीने मोक्षना मार्गमां आवो.
(६१)
जगतना जीवोमां छमहिना–आठसमये ६०८ जीवोनी धारा निरंतर मोक्षमां
चाली ज जाय छे. छमहिना–आठसमयमां ६०८ जीवो आत्मानी लब्धि करे छे–
एवी जे अखंड मोक्षनी धारा चाली रही छे–तुं पण तेमां भळी जा... ने! आम
संतो मोक्ष माटेनां आमंत्रण आपे छे. अमे तो मुक्तिनो महोत्सव मांड्यो छे–तुं
पण ते महोत्सवमां भळी जा.
(६२)
जिनदेव अने गणधरदेव समस्त गुणने धारण करनारा छे, तेमणे प्रकाशेलुं जे
परमचैतन्यतत्त्व, ते रूप पोतानो आत्मभाव थवो, एटले के विपरीतता रहित
ते तत्त्वना श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रतारूप आत्मभाव थवो, ते परम योग छे.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र ए त्रणेय परम योग छे.
(६३)
परम योग एटले उपयोगने अंतर्मुख जोडीने आत्मानो अनुभव, ते
अनुभवरसमां अनंतगुणनो रस समाय छे. अनंतगुणना रसनो आनंद
आत्माना अनुभवमां समाय छे, ते अनुभवरस जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे. –
गुण अनंतको रस सबे, अनुभवरसके मांही;
तातें अनुभव सारीखो, ओर दूसरो नांहीं.
जेमां चैतन्यना अनंतगुणनो रस समाय छे एवो अनुभव ते ज मोक्षमार्ग छे.
आत्माना अनुभव समान आ जगतमां बीजुं कांई नथी.
(६४)
भाई, तारी जे वस्तु छे, तारामां ज जे भरी छे, तेमां तारा उपयोगने जोडतां
आनंदना वेदनसहित जे परम समता थाय छे ते ज मोक्षगत पुरुषोनी
परमार्थभक्ति छे. जेमनी भक्ति करवानी छे तेमना जेवो गुण पोतामां प्रगट
करवो ते ज खरी भक्ति छे. वीतरागनी भक्ति वीतरागभाव वडे थाय,
एनाथी विरुद्ध एवा रागभाव वडे वीतरागनी भक्ति केम थाय? (६५)
अहो, आत्मानो परम अद्भुत आनंदवैभव जे स्वानुभवमां प्रगट्यो
तेनी शी वात! सर्वज्ञदेव–परमगुरु अने गणधरदेव वगेरे परंपरा गुरुओ–
जेओ चैतन्यना आनंदरसमां अत्यंत निमग्न हता, तेमना अनुग्रहपूर्वक अमने जे