
परिणमावीने मोक्षना मार्गमां आवो.
चाली ज जाय छे. छमहिना–आठसमयमां ६०८ जीवो आत्मानी लब्धि करे छे–
एवी जे अखंड मोक्षनी धारा चाली रही छे–तुं पण तेमां भळी जा... ने! आम
संतो मोक्ष माटेनां आमंत्रण आपे छे. अमे तो मुक्तिनो महोत्सव मांड्यो छे–तुं
पण ते महोत्सवमां भळी जा.
परमचैतन्यतत्त्व, ते रूप पोतानो आत्मभाव थवो, एटले के विपरीतता रहित
ते तत्त्वना श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रतारूप आत्मभाव थवो, ते परम योग छे.
सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र ए त्रणेय परम योग छे.
आत्माना अनुभवमां समाय छे, ते अनुभवरस जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे. –
तातें अनुभव सारीखो, ओर दूसरो नांहीं.
आत्माना अनुभव समान आ जगतमां बीजुं कांई नथी.
आनंदना वेदनसहित जे परम समता थाय छे ते ज मोक्षगत पुरुषोनी
परमार्थभक्ति छे. जेमनी भक्ति करवानी छे तेमना जेवो गुण पोतामां प्रगट
करवो ते ज खरी भक्ति छे. वीतरागनी भक्ति वीतरागभाव वडे थाय,
एनाथी विरुद्ध एवा रागभाव वडे वीतरागनी भक्ति केम थाय? (६५)
जेओ चैतन्यना आनंदरसमां अत्यंत निमग्न हता, तेमना अनुग्रहपूर्वक अमने जे