
पर्यायमां ज्ञान–आनंदनो जे स्वाद स्वसन्मुखताथी आव्यो तेवा ज्ञान–आनंद–
रसनो समुद्र हुं छुं–एम गंभीर चैतन्यतत्त्व धर्मीनी अनुभूतिमां आवी
गयुं छे.
प्रसिद्ध थयो पछी त्यां भव केम रहे? ते निःशंक जाणे छे के अमारी पर्यायमां
परमात्मा जाहेर थया छे, –प्रसिद्ध थया छे–प्रगट थया छे. परमात्मा अमारी
पर्यायमां बिराज्यां छे; तेमां हवे राग के भव रही शके नहीं. अमे जिननाथने
अनुसरनारा जैन थया छीए. आवा जैनमार्ग सिवाय बीजा कोई मार्गनी
मान्यता ते मिथ्यात्व छे.
रहे नहीं. परिणति तो रागथी छूटीने चैतन्यप्रभु साथे जोडाई गई– त्यां हवे
भवदुःख केवा? ने अवतार केवा? ए तो आनंद करतो–करतो जैनमार्गे
मोक्षपुरीमां चाल्यो जाय छे. ते रत्नत्रयनो भक्त छे–भक्त छे... मोक्षना डंका
तेनी पर्यायमां वागी रह्या छे.
परमतत्त्व कह्युं, ते चैतन्यतत्त्वने जेणे पोतानी स्वानुभूतिमां प्रसिद्ध कर्युं ते जैन
थयो, तेने भवनो अभाव थई गयो. भवनो अभाव करनारुं आनंदमय
चैतन्यतत्त्व तेनी पर्यायमां प्रसिद्ध वर्ते छे. आवो जीव भगवाननो खरो भक्त
छे. तेने रत्नत्रस्वरूप निर्वाणभक्ति निरंतर वर्ते छे.
भक्ति ते ज उत्तम भक्ति छे. आ भक्तिमां सर्व आत्मप्रदेशे अत्यंत आनंदरूपी
अमृतना ऊभरा वहे छे, ने तेनाथी आत्मा परितृप्त थाय छे. सर्वे जिनवरो
आवी भक्ति करीने मुक्ति पाम्या. माटे हे भव्य महाजनो! तमे पण आत्माने
वीतरागी सुख देनारी आवी उत्तम भक्ति करो..