
रहेजे, के अमारा उपर शुभराग करीने अटकी रहेजे– एम न कह्युं, पण
श्रीगुरुए तो एम कह्युं के तारा परमात्मा तारा अंतरमां तारी समीप ज
बिराजे छे, तेने अनुभवमां ले. वाणीनुं ने रागनुं लक्ष छोडीने, परनो महिमा
छोडीने, आत्माना परमस्वभावनो महिमा लक्षमां ले–ए ज बार अंगनो सार
छे. ज्ञान–आनंदमय आत्मानी अनुभूति ज सर्व सिद्धांतनो सार छे, ते ज
गुरुनुं परमार्थ सान्निध्य छे, ते सिद्धनी निश्चयभक्ति छे, ने ते ज निर्वाणनो
आनंदमय मार्ग छे. (८९)
सार छे. जेणे स्वानुभूति करी तेणे सर्व सिद्धांतनो सार जाणी लीधो; पछी त्यां
एवी कोई अटक नथी के बार अंग भणे तो ज आत्मानी अनुभूति थाय. तेने
शास्त्रभणतरनुं बंधन नथी के आटला शास्त्रो वांचवा ज पडशे. जेणे सर्व
शास्त्रना रहस्यभूत आत्मानुं भणतर भणी लीधुं, –तेनी अनुभूति करी लीधी,
तेणे आखा सर्वज्ञ परमात्मा पोतामां प्राप्त करी लीधा. –ते भक्त छे, ते
आराधक छे, ते मोक्षनो पंथी छे. अरे, आत्मअनुभूतिना महिमानी लोकोने
खबर नथी, अने बहारना शास्त्रभणतर वगेरे परलक्षी जाणपणामां तेओ
अटकी जाय छे. पण शास्त्रोए कहेलुं चैतन्यतत्त्व अंतरमां बिराजी रह्युं छे– तेनी
सन्मुखता कर्यां वगर शास्त्रनुं रहस्य पण समजाय नहि. (९०)
अंदर शांतरसना शेरडा छूटे छे. आवी अनुभूति ते ज निर्मळ सुखकारी धर्म छे.
आवो धर्म में प्राप्त कर्यो छे अने आवा आनंदमय आत्मतत्त्वना ज्ञान वडे
समस्तमोहनो महिमा में नष्ट कर्यो छे; ज्ञानतत्त्वनो अगाध महिमा प्रगट्यो
त्यां मोहनो महिमा छूटी गयो. आ रीते श्रीगुरुनी समीपतामां मारा
परमतत्त्वने प्राप्त करीने, हवे हुं तेमां ज लीन थाउं छुं. बधा तीर्थंकरोए आम
कर्युं छे ने हुं पण ते तीर्थंकरोना मार्गे जाउं छुं, –आवी दशानुं नाम परमभक्ति
छे. आ भक्ति भवने छेदनारी छे ने आ भक्तिमां चैतन्यना आनंदरसना
फूवारा ऊछळे छे. (९१)